Physics Class 10 Chapter 3 Notes in Hindi :BSEB Class 10th Notes in Hindi विधुत(Electricity) class 10 chapter 3 notes in Hindi NCERT notes class 10th chapter विधुत(Electricity) नोट्स इन हिंदी class 10 physics chapter 3 notes in Hindi :
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
हम आपके लिए इस chapter विधुत(Electricity) में कम समय में परिक्षा की तैयारी करने के लिए शाँट नोट्स लाए है। जिनसे आप अपनी परिक्षा की तैयारी कम से कम समय में कर पायेंगे । इस पोस्ट में हमने इस chapter का हरेक point को आसान भाषा में cover कियें है जो आप कभी नहीं भुल पाएंगे ।
विधुत
पदार्थ का वह अज्ञात गुण जिसके कारण व अन्य वस्तु को आकर्षित या प्रतिकर्षित करता है विद्युत कहलाता है
विद्युत के प्रकार
स्थिर विद्युत –किसी वस्तु में प्राकृतिक रूप से विद्युत उत्पन्न करने की जो विशेषता होती है उसे स्थिर विद्युत कहते हैं
घर्षण विद्युत –जब दो वस्तुएं परस्पर रगड़ खाने के फलस्वरूप विधुतमय हो जाते हैं तो उन वस्तुओं में उत्पन्न विद्युत घर्षण विद्युत कहलाता है
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
आवेश
किसी पदार्थ के परमाणु में उपस्थित आवेशित कणों की संख्या में अंतर की स्तिथि उस वस्तु का आवेश कहलाती है इसे q या Q से सूचित किया जाता है इसका s/i मात्रक कुलम्ब होता है इसे c से सूचित किया जाता है एक कुलम्ब आवेश में इलेक्ट्रॉन की संख्या= 6.25×10¹⁸ होता है।एक इलेक्ट्रॉन पर 1.6×10¹⁹(– में) होता है
आवेश के गुण
- समान या सजातीय आवेशों में प्रतिकर्षण अर्थात विकर्षण होता है
- असमान या विजातीय आवेशों में आकर्षण होता है
- वस्तु के आवेशित होने का सही ज्ञात उनके बीच होने वाला प्रतिकर्षण ही है
कूलंब का नियम
दो आवेशित पिंडों के बीच कार्यरत आकर्षण या विकर्षण का बल उनके आवेश के गुणनफल के सीधा समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। f=k.(q1.q1/r²) जहाँ k एक नियतांक है।
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
आवेश के प्रकार
धन आवेश –जिस आयन में प्रोटीन की संख्या इलेक्ट्रॉन की संख्या से अधिक होती है उसे धनायन कहते हैं तथा उस वस्तु आवेश को धन आवेश कहते हैं
ऋण आवेश – जिस आयन में इलेक्ट्रॉन की संख्या प्रोटोन की संख्या से अधिक होता है ऋण कहलाता है तथा उस वस्तु के आवेश को ऋण आवेश कहते हैं
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
क्या आप जानते हैं पदार्थ में आवेश क्यों उत्पन्न होता है
किसी पदार्थ में आवेश की उत्पत्ति का मुख्य कारण उसके द्वारा इलेक्ट्रॉन का स्थानांतरण करना है
विद्युत धारा
किसी चालक से आवेश प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं इसे i से सूचित किया जाता है इसका s/i मात्रक एंपियर होता है जिसे A से सूचित किया जाता है विधुत धारा(i)=Q/t 1 एम्पियर(A)=1c/sec
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
विद्युत धारा के प्रकार
दिष्ट धारा –जब किसी चालक से प्रवाहित विद्युत धारा का मान और दिशा समय के साथ नहीं बदलता है तो उसे दिष्ट धारा कहते हैं इसे संक्षिप्त में D.C भी कहा जाता है इसका मुख्य स्रोत सेल और D.C जेनरेटर है
प्रत्यावर्ती धारा –जब किसी चालक से प्रवाहित विद्युत धारा का मान और दिशा समय के साथ बदलता है तो इसे प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं इसे संक्षिप्त में A.C भी कहते हैं इसका मुख्य स्रोत A.C डायनेमो या विद्युत आपूर्ति है
विद्युत धारा के अन्य प्रकार
इलेक्ट्रॉनिक धारा –विद्युत धारा का प्रवाह निम्न विभव( ऋण ध्रुव) से उच्च विभव( धन ध्रुव) की ओर होता है जिसे इलेक्ट्रॉनिक धारा कहते हैं
कन्वेंशनल धारा – ऋण ध्रुव को निम्न विभव तथा धन ध्रुव को उच्च विभव मानते हुए ऐसा माना जाता है कि धारा का प्रवाह उच्च विभव से निम्न विभव की ओर होता है इसे कन्वेंशनल धारा कहते हैं
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
विद्युत विभव
विद्युत के क्षेत्र के अंतर्गत इकाई धन आवेश को अनंत से किस बिंदु तक लाने में किया गया कार्य विद्युत विभव कहलाता है इसका s/i मात्रक वोल्ट होता है इसे r से सूचित किया जाता है यह एक अदिश राशि है
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
विभवांतर
विद्युत क्षेत्र के अंतर्गत दो बिंदुओं के बीच के विभव के अंतर को विभवांतर कहते हैं इसका भी s/i मात्रक वोल्ट होता है। विभवांतर(V)=W/Q या W=V×Q
वोल्ट= जुल/ कुलम्ब 1 वोल्ट=1J/C
1 वोल्ट
1 कुलम आवेश को विद्युत क्षेत्र के अंतर्गत एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक लाने में किया गया कार्य एक जुल हो तो उन बिंदुओं के बीच का विभवांतर 1 वोल्ट कहलाता है
वोल्ट मीटर
वैसा भौतिक यंत्र जिसकी सहायता से परिपथ की विभवांतर को मापा जाता है वोल्टमीटर कहलाता है यह विधुतीय परिपथ में समांतर क्रम में जुड़ा रहता है
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
एमीटर या आमीटर
वैसा भौतिक यंत्र जिसकी सहायता से चालक से प्रवाहित धारा को मापा जाता है एमीटर कहलाता है यह परिपथ में श्रेणी क्रम में जुड़ा रहता है
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
विद्युत वाहक बल
इकाई धन आवेश को सेल सहित पूरे परिपथ में एक चक्कर लगाने में किया गया कार्य विद्युत वाहक बल कहलाता है इसे E सूचित किया जाता है इसका भी s/i मात्रक वोल्ट होता है इसे संक्षिप्त में e.m.f. लिखा जाता है
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
विद्युत परिपथ
चालक तार एवं विभिन्न विद्युत उपकरण से बनी ऐसी व्यवस्था जिससे होकर धारा का प्रवाह लगातार होता है विद्युत परिपथ कहलाता है
विद्युत चालकता के आधार पर पदार्थ का वर्गीकरण
अचालक या कुचालक –वे सभी पदार्थ जिससे विद्युत धारा का प्रवाह नहीं हो सकता कुचालक कहलाता है जैसे प्लास्टिक काँच रबर इत्यादि सिरामिक्स या चीनी मिट्टी जिसकी विशिष्ट चालकता अत्यंत कम 10⁷(– में) प्रति ओम प्रति मीटर होती है एक कुचालक पदार्थ है
चालक –वे सभी पदार्थ जिससे होकर विद्युत धारा का प्रवाह आसानी से हो सके चालक कहलाता है जैसे लोहा एलुमिनियम तांबा सोना चांदी नमक जल का बिलियन इत्यादि इन सभी में चांदी सबसे अच्छा चालक है क्योंकि इसकी विशिष्ट चालकता 10⁷ प्रति ओम प्रति मीटर होता है
अर्धचालक –वे सभी पदार्थ जो सामान्य ताप पर कुचालक जैसा व्यवहार करते हैं किंतु ताप बढ़ाने पर धारा प्रवाह आंशिक रूप से करने लगते हैं अर्धचालक कहलाता हैं सिलिकॉन और जर्मेनियम प्रमुख अर्धचालक पदार्थ है जिसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों जैसे डायोड कंप्यूटर में होता है
अतिचालक –वे पदार्थ जिनका प्रतिरोध अति निम्न ताप पर भी कम होने से उसमें विद्युत धारा का प्रवाह अत्यधिक मात्रा में होता है अतिचालक कहलाता है पारा शीशा जिंक एल्युमीनियम तथा सोना और बिस्मथ का मिश्र धातु अतिचालक पदार्थ के प्रमुख उदाहरण है
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
प्रतिरोध
किसी पदार्थ का वह अज्ञात गुण जिसके कारण वह स्वयं से प्रवाहित होने वाले विद्युत धारा का विरोध करता है उस पदार्थ का प्रतिरोध कहलाता है इसका सूचक R या r होता है इस का s/i मात्रक ओम(Ω) होता है
क्या आप जानते हैं चालक का प्रतिरोध किन किन बातों पर निर्भर करता है
चालक तार की लंबाई पर –किसी चालक का प्रतिरोध चालक के लंबाई के सीधा समानुपाती होता है
चालक के मोटाई पर –किसी चालक का प्रतिरोध उस चालक के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है
चालक के ताप पर –किसी चालक का प्रतिरोध उस पर आरोपित ताप के व्युत्क्रमानुपाती होता है
चालक तार की प्रकृति पर –भिन्न-भिन्न प्रकृति वाले पदार्थों का प्रतिरोध भिन्न-भिन्न होता है
विशिष्ट प्रतिरोध या प्रतिरोधकता
इकाई अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल और इकाई लंबाई के चालक तार के प्रतिरोध को विशिष्ट प्रतिरोधक कहते हैं इसे रो से सूचित किया जाता है तथा इसका s/i मात्रक ओम मीटर होता है
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
विशिष्ट चालकता
किसी चालक के विशिष्ट प्रतिरोध के व्युत्क्रम को उस चालक का विशिष्ट चालकता कहते हैं इसका s/i मात्रक प्रति ओम प्रति मीटर होता है
प्रतिरोध ताप गुणांक
किसी चालक के ताप में इकाई परिवर्तन करने पर उसके प्रतिरोध में होने वाले परिवर्तन को प्रतिरोध ताप गुणांक कहते हैं इसे अल्फा से सूचित किया जाता है इसका s/i मात्रक /°C होता है
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
ओम का नियम
जॉर्ज साइमन ओम ने विद्युत धारा और विभवांतर के बीच संबंध का प्रतिपादन किए जिसे ओम का नियम कहते हैं इस नियम के अनुसार ,
अचर ताप पर किसी चालक के सिरों के बीच आरोपित विभवांतर चालक से प्रवाहित धारा के सीधा समानुपाती होता है I∞V , I=R×V( जहाँ R एक नियतांक है)R को चालक के ओमीय प्रतिरोध कहते हैंI I=V×R( विधुत धारा= विभवांतर× प्रतिरोध)
प्रतिरोधों का संयोजन या संमुहन
दो या दो से अधिक प्रतिरोधों को एक साथ जोड़ने पर प्राप्त व्यवस्था प्रतिरोधों का संयोजन कहलाता है इसका मुख्य उद्देश्य विद्युतीय परिपथ में प्रवाहित होने वाली विद्युत के मान को नियंत्रित करना है
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
प्रतिरोधों का संयोजन के प्रकार
प्रतिरोधों का श्रेणी क्रम संयोजन –प्रतिरोधों का वैसा संयोजन जिसमें पहले प्रतिरोध का अंतिम शिरा तथा दूसरे प्रतिरोध का पहला सिरा एक साथ जुड़ा रहता है प्रतिरोधों का श्रेणी क्रम संयोजन कहलाता हैअर्थात प्रतिरोधों का वैसा संयोजन जिससे धारा का प्रवाह एक कल मार्ग गामी हो श्रेणी क्रम संयोजन कहलाता है
श्रेणी क्रम संयोजन में समतुल्य प्रतिरोधों के लिए व्यंजक
R=r1+r2+r3
श्रेणी क्रम संयोजन में समतुल्य प्रतिरोध का मान प्रत्येक प्रतिरोध के योगफल के बराबर होता है अर्थात प्रत्येक प्रतिरोध से बड़ा होता है यदि समान मान R के n प्रतिरोधों को श्रेणी क्रम में जोड़ा जाए तो समतुल्य प्रतिरोध R=n.r होता है
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
प्रतिरोधों का समांतर क्रम संयोजन
प्रतिरोधों का वैसा संयोजन जिसमें प्रत्येक प्रतिरोध का पहला शिरा एक साथ तथा अंतिम शीरा एक साथ परिपथ में जुड़ा रहता है प्रतिरोधों का समांतर क्रम संयोजन कहलाता है अथवा प्रतिरोधों का वैसा संयोजन जिससे प्रवाहित धारा बहू मार्ग गामी होता है प्रतिरोध का समांतर क्रम संयोजन कहलाता है
समांतर क्रम संयोजन में समतुल्य प्रतिरोध के लिए व्यंजन
1/R=1/r1+1/r2+1/r3
समांतर क्रम संयोजन में समतुल्य प्रतिरोध का मान प्रत्येक प्रतिरोध के मान से छोटा होता है यदि समान मान r के n प्रतिरोधों को समांतर क्रम में संयोजित किया जाए तो समतुल्य प्रतिरोध का मान R=r/n होता है।
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
प्रतिरोधों का मिश्रित क्रम संयोजन
प्रतिरोधों का वैसा संयोजन जिसमें श्रेणी क्रम संयोजन तथा समांतर क्रम संयोजन दोनों एक साथ उपस्थित रहता है प्रतिरोधों का मिश्रित क्रम संयोजन कहलाता है
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव
जब किसी चालक तार से विद्युत धारा प्रवाहित किया जाता है तो चालक तार गर्म हो जाता है इसे ही विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव होते हैं
जब किसी चालक से विद्युत धारा प्रवाहित किया जाता है तो वह गर्म क्यों हो जाता है ?
जब किसी चालक से विद्युत धारा प्रवाहित किया जाता है तो चालक तार के प्रतिरोध द्वारा उस से प्रवाहित विद्युत धारा में रुकावट पैदा किया जाता है जिसके कारण विद्युत ऊर्जा का ह्रास होता है और यही रूपांतरित होकर उष्मीय ऊर्जा के रूप में प्रकट होता है जिससे चालक तार गर्म हो जाता है
जूल का नियम
R प्रतिरोध के किसी चालक से t समय तक I धारा प्रवाहित किया जाए तो चालक तार में उत्पन ऊष्मा H=(I)².Rt होता है। इससे संबंधित नियम को इस जूल का नियम कहते हैं
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
जुल के तीन महत्वपूर्ण नियम
जुल के धारा का नियम –यदि नियत प्रतिरोध के किसी चालक से नियत समय तक धारा प्रवाहित किया जाए तो चालक में उत्पन ऊष्मा धारा के वर्ग के समानुपाती होता है H∞I² ( जहाँ R और t नियत है)
जूल के प्रतिरोध का नियम –यदि किसी चालक से नियत समय तक नियत धारा प्रवाहित किया जाए तो चालक में उत्पन ऊष्मा चालक के प्रतिरोध के सीधा समानुपाती होता है H∞R( जहाँ I और t नियत है)
जुल के समय का नियम –यदि नियत प्रतिरोध के किसी चालक से नियत धारा प्रवाहित किया जाए तो चालक से उत्पन्न ऊष्मा धारा प्रवाह के समय के सीधा समानुपाती होता हैI H∞t( जहाँ R और I नियत है)
विद्युतीय शक्ति
इकाई समय में किसी विद्युत उपकरण के द्वारा जितना विद्युत ऊर्जा का उपभोग होता किया जाता है उस उपकरण का विद्युतीय शक्ति कहलाता है इसे P से सूचित किया जाता है इसका s/i मात्रक वाट(w) होता है P=W/t या H/t या I².R या V×I एक वाट= एक वोल्ट× एक एम्पियर
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
विद्युतीय ऊर्जा
किसी विधुतीय उपकरण द्वारा ऊर्जा का व्यय करने की क्षमता को उस उपकरण का विद्युत ऊर्जा कहते हैं इसका s/i मात्रक जूल होता है तथा व्यवसायिक मात्रक kgwh या kwh होता है। 1 B.O.T unit=3.36 X10⁶J के बराबर होता है।
क्या आप जानते हैं बल्ब का बनावट कैसा होता है ?
विद्युत उपकरण धारा के उष्मीय प्रभाव के सिद्धांत पर कार्य करता है
बनावट –शीशे का बना एक गोलाकार आवरण के अंदर टंगस्टन का तंतु लगा रहता है इसके दो छोर बाहर दो टर्मिनल के रूप में निकले रहते हैं इस आवरण के अंदर विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव के कारण फिलामेंट वाष्पित न हो इसलिए उसमें अक्रिय गैस के रूप में हिलियम नियॉन या आर्गन भरा रहता है ।टंगस्टन का उच्च गलनांक(3000°C) तथा प्रतिरोध चालक तार होता है
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
विद्युत हीटर
यह उपकरण भी विद्युत धारा के उसमें प्रभाव के सिद्धांत पर कार्य करता है इसमें नाइक्रोम मिश्र धातु का क्वायल लगा रहता है जिसका गलनांक और विशिष्ट प्रतिरोध काफी उच्च होता है जब इसके दो छोरो को मुख्य तार से जोड़ा जाता है तो धारा के उष्मीय प्रभाव के कारण यह अत्यधिक मात्रा में उसमें ऊर्जा का विसर्जन करता है नाइक्रोम निकेल और क्रोमियम का मिश्र धातु है विद्युत इस्त्री विद्युत विकिरक इत्यादि भी धारा के उष्मीय प्रभाव के सिद्धांत पर कार्य करता है
विद्युत फ्यूज
निम्न गलनांक का वह चालक तार जो विद्युतीय परिपथ में उत्पन्न दोषों को उस में लगे उपकरणों को सुरक्षा प्रदान करता है विद्युत फ्यूज कहलाता है यह भी विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव के सिद्धांत पर कार्य करता है
फ्यूज तार की क्षमता
धारा के जिस प्रबलता को प्राप्त कर तार गल जाता है फ्यूज तार की क्षमता कहलाता है फ्यूज तार विद्युतीय परिपथ में उत्पन्न दोषों से उसमें लगे उपकरणों की रक्षा करता है
PHYSICS CLASS 10TH CHAPTER 3 NOTES IN HINDI
अतिभारण
जब कोई चालक तार अपनी क्षमता से अधिक धारा का प्रवाह स्वयं से करता है तो विद्युत धारा के उसमें प्रभाव के कारण वह चालक तार गर्म होकर पिघल जाता है जिससे परिपथ भंग हो जाता है और उपकरण कार्य करना बंद कर देता है परिपथ में उत्पन्न संबंधित दोष को अतिभारण कहते हैं
लघुपथन
जब परिपथ में किसी कारण वश ठंडा तार और गर्म तार एक दूसरे के संपर्क में आ जाता है तो परिपथ में उच्च विभवांतर की धारा प्रवाहित होने लगती है फलतः विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव के कारण परिपथ भंग हो जाता है और उपकरण कार्य करना बंद कर देता है जिसे लघुपथन कहते हैं यहां परिपथ के विभवांतर का बढ़ने का मुख्य कारण धारा के गमन का छोटा होना हैमनुष्य के शरीर का प्रतिरोध( सुखा त्वाचा) 30000Ωतथा त्वचा भिंगा रहने पर घटकर 200–300Ω हो जाता है
नाइक्रोम का उपयोग मानक प्रतिरोध बनाने में नहीं किया जाता है क्यों
क्योंकि इसका प्रतिरोध ताप गुणांक अधिक होता है
ओम के नियम में ताप को अचर रखा जाता है क्यों ?
किसी चालक का प्रतिरोध ताप के परिवर्तन से बदलता है ऐसा होने पर चालक से प्रवाहित होने वाली धारा का मान भी सही सही मान प्राप्त नहीं होता है अर्थात एक साथ कई मान बदल जाते हैं अतः ओम के नियम में ताप को अचर रखा जाता है
पृथ्वी का विभव शुन्य क्यों होता है ?
पृथ्वी का विभव शुन्य माना जाता है इसका आकार बहुत बड़ा है यदि पृथ्वी थोड़ा सा आवेश ले ले तो इसके विभव पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा अतः पृथ्वी के धरातल पर सभी बिंदु एक ही विभव पर माने जाते हैं
विद्युत बल्ब के तंतु टंगस्टन का बना होता है क्यों ?
क्योंकि टंगस्टन का गलनांक 3000°C से अधिक होता है
विद्युत बल्ब के अंदर निष्क्रिय गैस भरी रहती है क्यों ?
विद्युत बल्ब के अंदर निष्क्रिय गैस भरी रहती है क्योंकि यदि हवा के उपस्थिति में फिलामेंट से धारा प्रवाहित की जाए तो गर्म होने पर हो ऑक्सी कृत होकर भंगूर हो जाएगा तथा चूर चूर हो जाएगा |
परिपथ में फ्यूज का उपयोग किया जाता है क्यों ?
विद्युत परिपथ में किसी कारणवश विद्युत धारा के प्रबल बढ़ जाता है तो उसमें लगी युक्तियां जल जाती है इसलिए इन युक्तियों को नष्ट होने से बचाने के लिए परिपथ में फ्यूज लगा दिया जाता है |
Also Read