Biology class 10th Chapter 3 Notes in Hindi | जनन (Reproduction) Best science notes in Hindi

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Biology class 10th Chapter 3 Notes in Hindi

Biology class 10th Chapter 3 Notes in Hindi
Biology class 10th Chapter 3 Notes in Hindi

हम आपके लिए इस chapter जनन(Reproduction) में कम समय में परिक्षा की तैयारी करने के लिए शाँट नोट्स लाए है। जिनसे आप अपनी परिक्षा की तैयारी कम से कम समय में कर पायेंगे । इस पोस्ट में हमने इस chapter का हरेक point को आसान भाषा में cover कियें है जो आप कभी नहीं भुल पाएंगे |

जनन (Reproduction)

वह प्रक्रम जिसके द्वारा जीव अपनी जैसी संतान की उत्पत्ति करते हैं जनन कहलाता है

जनन के प्रकार

अलैंगिक जनन –जनन कि वह विधि जिसमें नर एवं मादा जनन अंगों की भागीदारी आवश्यक नहीं होती है अलैंगिक जनन कहलाता है।

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अलैंगिक जनन के प्रकार

विखंडन या द्विविखंडन –जब कोई कोशिका पूर्णतः विकसित हो जाती है तब उसका केंद्रक विभाजित हो जाता है विभाजित केंद्र के दोनों अर्धभाग कोशिका द्रव्य के आधे आधे भाग को लेकर अलग हो जाते हैं और इस प्रकार दो अनुज्ञात कोशिकाएं बन जाती है यह  अनुज्ञात कोशिकाएं विकसित होकर नए-नए जीव बनाती है इस विधि को विखंडन कहते हैं जैसे अमीबा

पुनरुदभवन

शरीर के क्षतिग्रस्त अथवा बेकार अंगों की मरम्मत या जीव के शरीर के किसी हिस्से से नये जीव की उत्पत्ति का अलैंगिक प्रक्रम जो किसी प्रौद जीवधारी के जीवन काल में स्वतः संचालित होता है पुनरुदभवन कहलाता है जैसे प्लेनेरिया

पुनरुदभवन कि क्रिया कि खोज सन् 1740 ई० मे ट्रेम्बले नामक वैज्ञानिक द्वारा हाइड्रा जन्तु के संदर्भ मे प्रथम बार की गई थी |

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मुकुलन

अलैंगिक जनन में भाग लेने वाले जीवो की कोशिकाओं में बार-बार विभाजन होने से एक उभार बन जाता है जिसे मुकुल कहते हैं तथा इससे नये जीवों का उत्पन्न होना मुकुलन कहलाता है

कायीक प्रवर्धन

जब पौधे के किसी भाग जैसे तना जड़ अथवा पति से प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से नया पौधा विकसित होता है तब इस प्रकार के अलैंगिक जनन को कायिक प्रवर्धन कहते हैं

रनर

घास की जड़ के पास नया तना निकलकर भूमि पर समानांतर रूप से बढ़ता है रनर कहलाता है

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विविद्यता

वह परिवर्तन जिनके कारण एक ही जाति के 2 सदस्य अथवा एक ही माता-पिता के दो संतान आपस में एक दूसरे से भिन्न हो जाती है विभिन्नता कहलाती है

उतक संवर्धन

संश्लेषित माध्यम में उतको द्वारा किसी पादप की उत्पत्ति का सुक्ष्म परिवर्धन उत्तक संवर्धन कहलाता है

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द्विखंडन तथा बहुखंडन मे अंतर

द्विखंडन –इस विधि में एक कोशिका 2 अनुपात कोशिकाओं में समान रूप से विभाजित होती है यह सामान्य परिस्थितियों में होता है यह एक तल में होता है

बहुखंडन –इसमें एक कोशिका बहुत सी कोशिकाओं में समान रूप से विभाजित होती है यह विषम परिस्थितियों में होता है यह विभिन्न तलों में होता है

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निषेचन(Fertilization)

नर एवं मादा युग्मक के संलयन को निषेचन कहा जाता है

दोहरा निषेचन

दो नर युग्मको का दो मादा युग्मको से संयुक्त होना दोहरा निषेचन कहलाता है

अंडसेना– ऐसे जीव जो अपने अंडों को अपने शरीर की गर्मी देते हैं इस क्रिया को अंड सेना कहते हैं

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अंडप्रजक

ऐसे जीव जिनके अंडों का विकास शरीर के बाहर होते हैं और उनके फटने से बच्चे निकलते हैं और प्रोजेक्ट कहलाते हैं

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नर जनन तंत्र

वृषण –मनुष्य के शरीर में एक जोड़ी वृषण पाई जाती है जो पेशिय थैली वृषण कोष के अंदर बंद रहते हैं वृषण कोष मुख्य रूप से शरीर के बाहर शिश्न के नीचे अवस्थित रहता है वृषण की कोशिकाएं शुक्राणुओं को उत्पन्न करती है

वृषण कोष शरीर के बाहर होता है क्यो?

क्योंकि शुक्राणुओं के उत्पादन के लिए शरीर के ताप से 2-3 डिग्री सेल्सियस कम ताप की आवश्यकता होती है

  • वृषण टेस्टोस्टेरॉन नामक हार्मोन का स्राव करती है।
  • नर मे टेस्टोस्टेरॉन का स्राव 15-18 वर्ष की उर्म मे प्रारंभ हो जाता है इस हार्मोन के प्रभाव से नर के जनन अंगो का विकास होता है और वृषण मे शुक्राणु उत्पन्न होते हैं।
  • नर हार्मोन के स्राव के कारण द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विकास होता है।
  • द्वितीयक लैंगिक लक्षण की पहचान दाढ़ी मुँछ का निकलना आवाज का भारी होना सिने एवम गुप्त अंगो पर बालो का आना ।
  • शुक्राणु की लम्बाई लगभग 1mm के 100वें भागो के बराबर होती है।

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शुक्रवाहिका –मांसल एवं संकुचन सील दीवारों वाली एक पतली नली होती है जो मूत्राशय के चारों ओर घूमकर अंतिम रूप से मूत्र मार्ग में खुलती है

शुक्राश्य –यह छोटी-छोटी नलिकाओं से बनी रचना है जो अधिक कुंडलिक होती है यह एक गाढ़े शुक्राश्य द्रव का स्राव करती है तो शुक्राणु से मिलने के बाद वीर्य कहलाता है विर्य एक गाढ़ा सफेद रंग का अर्धतरल भाग होता है जिसमें विचित्र प्रकार की गंध होती है

पुरःस्थ –यह दोहरी पालीयों वाली ग्रंथि है जिसकी नलिका मूत्र मार्ग में निकलती है यह पुरःस्थ द्वव का स्राव करती है जो एक क्षारीय पदार्थ होता है जो विर्य से मिलकर पुरुष के मूत्र मार्ग एवं स्त्रियों के योनि को उदासीन कर देता है

शिशन – यह पुरुष की बाध्य जनन ज्ञानेंद्रियां हैं जिसके भीतर मुत्रवाहिनी होती है शिशन कि मुत्रवाहिनी मूत्र एवं विर्य को बाहर निकालने का कार्य करती है

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मादा जनन तंत्र

मानव में मादा जनन तंत्र नर जनन तंत्र की अपेक्षा अधिक जटिल होता है इसका कारण वह है कि मादा जनन तंत्र को भिन्न भिन्न प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं जैसे अंडाणुओं का निर्माण करना शुक्राणुओं को ग्रहण करना इत्यादि

अंडाशय –मादा के शरीर में उदर गुहा के ठीक नीचे दो गोलाकार अंडाशय होते हैं जो बाय और दाहिने हिस्से में भली भांति व्यवस्थित होते हैं यह अंडाणुओं का उत्पादन तथा मादा हार्मोन एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्ट्रॉन का स्राव करता है।

अंडवाहिनी या डिम्बवाहिनी –प्रत्येक अंडाशय के पास से एक कीप के आकार की रचना प्रारंभ होती है जिसे अंडवाहिनी या डिंबवाहिनी कहते हैं यह अंडाणुओं को गर्भाशय तक पहुँचाता है तथा निषेचन में सहायक स्थान उपलब्ध कराता है।

गर्भाशय – यह एक मांशल त्रिभुजाकार अंग है जो श्रेणीगुहा मे स्थित रहता है इसकी लम्बाई 7.5cm चौड़ाई 5cm तथा मोटाई 3.5cm होती है यह ऋतुस्राव चक्र का संचालन गर्भधारण गर्भ का पोषण तथा गर्भ का विकास करता है।

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योनी –यह एक लंबी एवं मांसल नली होती है इसकी लंबाई मादा की लंबाई पर निर्भर करती है फिर भी इसकी औसत लंबाई 7.5cm के लगभग होती है इसकी दीवारें एपिथीलियम ऊतक की बनी होती है जिसमें छोटी-छोटी ग्रंथियां पाई जाती है जो एक प्रकार की चिकनी और लसदार पदार्थ का स्राव करती है यह पुरुष के शिशन को अन्दर का मार्ग शिशन से स्वखलित विर्य को गर्भाशय के संपर्क मे ले जाना गर्भाशय के स्रावो को बाहर आने का रास्ता तथा गर्भाशय शिशु बाहर आने के लिए फैलना और चौड़ा मार्ग प्रदान करती है।

भग – योनी बाहर की ओर एक छिद्र द्वारा खुलती है जिसे योनि द्वार कहते हैं इस छिद्र के ऊपर एक छोटा सा छिद्र होता है जिसे मुत्राशय कहते हैं इन दीवार के आस पास के मांसल भाग को भग कहते है।

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हाइमेन

योनि के भीतर एक पतली झिल्ली पाई जाती है जिसे हाईमेन कहते हैं यह झिल्ली कम उम्र की लड़कियों में पाई जाती है जो उछल कूद या भाग दौड़ या रजोस्राव के प्रारंभ होने पर समाप्त हो जाती है

द्वितीयक लैंगिक लक्षण

स्तनो का विकास एवं वृद्धि भग पर एवं बगलो में बालो का उगना तथा नितम्बों में फैलाव द्वितीयक लैंगिक लक्षण कहलाता है।

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अंडोत्सर्ग– अंडाशय से अंडाणुओं का निकलना अंडोत्सर्ग कहलाती है।

मासिक धर्म

पूर्व रजोस्त्राव से दुसरे रजोस्राव के बीच 28 दिनों के चक्रिय क्रिया को मासिक धर्म कहते है।

यौवनारम्भ

नर एवं मादा के शरीर मे जनन हार्मोनो का बनना एवं उन हार्मोनों के प्रभाव से लैंगिक लक्षण का विकसित होना यौवनारम्भ कहलाता है।

परिवार कल्याण

प्राकृतिक अथवा अप्राकृतिक उपायों द्वारा विकसित समृद्धि और पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से परिवार के आकार को सीमित रखना परिवार नियोजन कहलाता है।

परिवार नियोजन का उपाय

गर्भ निरोध –गर्भनिरोध युक्तियां मुख्य रूप से गर्भ को रोकने के लिए के लिए अपनाए जाते हैं इसके प्रयोग से यौन संबंध कुछ रोगो के संक्रमण से बचा जा सकता है इसके लिए आत्म संयम यांत्रिक विधिया तथा रासायनिक  विधियाँ है

नसबंदी

इस विधि के अंतर्गत शल्य चिकित्सक द्वारा पुरुषों में शुक्रवाहिका का तथा स्त्रियों में डिंब वाहिनी को काटकर बांध दिया जाता है इससे पुरुषों में नसबंदी तथा स्त्रियों में बंध्याकरण कहते हैं

जनन स्वास्थ्य

वे शारीरिक एवं मानसिक दशा जो सम्मिलित रूप से नर अथवा मादा के जनन क्षमता को प्रभावित करता है जनरल स्वास्थ्य कहलाता है ।

जनन स्वास्थ्य के कारक

अत्यधिक गरीबी एवम पिछडापन , मांसिक तनाव एवम शारिरिक अस्वस्थ , अशिक्षा , यौन रोग , शारिरिक दोष

यौन रोग

जनन अंगो कि बिमारियों को यौन रोग कहा जाता है।

यौन रोग के प्रकार

कुसंक्रियता –ऐसे रोग जो जनन अंगों के दुरुपयोग एवं उनकी देखभाल नहीं करने पर उत्पन्न हो जाते हैं जनन अंगों की कुसक्रियता से उत्पन्न रोग कहलाते हैं

संक्रमण

ऐसे रोग जो गंदगी एवम व्यक्तिगत अस्वच्छता के कारण उत्पन्न होता है संक्रमण कहलाता है।

जीवाणु जनित रोग

गुनेरिया तथा सिफलिश

विषाणु जनित रोग

HIV तथा AIDS

  • HIV – Human Immuno virus
  • AIDS – Acquired Immunodeficiency syndrome
  • WHO – world health Organization 

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