Physics Class 10 Chapter 1 Notes in Hindi | प्रकाशः परावर्तन एवम् अपवर्तन (Light : Reflection and Refraction) Best Science Notes

Physics Class 10 Chapter 1 Notes in Hindi : प्रकाश: परावर्तन एवं अपवर्तन ( Light: Reflection and Refraction) यह एक बाहरी भौतिक कारक है प्रकाश हमारी आँखो को कोई भी चीज को देखने मे सहायता करता है। class 10 chapter 1 notes in Hindi NCERT notes class 10th chapter Light: Reflection and Refraction प्रकाश: परावर्तन एवं अपवर्तन नोट्स इन हिंदी class 10 physics chapter 1 notes in Hindi 

Table of Contents

Physics Class 10 Chapter 1 Notes in Hindi

Physics Class 10 Chapter 1 Notes in Hindi
Physics Class 10 Chapter 1 Notes in Hindi

हम आपके लिए इस chapter प्रकाश: परावर्तन एवं अपवर्तन(Light: Reflection and Refraction) में कम समय में परिक्षा की तैयारी करने के लिए शाँट नोट्स लाए है। जिनसे आप अपनी परिक्षा की तैयारी कम से कम समय में कर पायेंगे । इस पोस्ट में हमने इस chapter का हरेक point को आसान भाषा में cover कियें है जो आप कभी नहीं भुल पाएंगे ।

प्रकाश (Light)

यह एक बाहरी भौतिक कारक है। 

प्रकाश हमारी आँखो को कोई भी चीज को देखने मे सहायता करता है।

क्या आप जानते है-

  • प्रकाश एक उर्जा है।
  • यह विधुत चुम्बकिय तरंग भी होता है।

   आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह केवल सीधा रेखा में चलता है और साथ ही साथ जहाँ हवा नहीं होता है वहा से भी आर – पार जा सकता है।

 जहाँ प्रकाश नहीं वहाँ परछाई नही

  • प्रकाश का वेग (Speed of light) 3×10⁸ m/s  होता है।
  • अगर आपसे कोई पुछता है कि प्रकाश एक उर्जा है कैसे तो?

           अरे सोचो मत हम है ना :

  • जब बल्ब जलता है तो इस प्रक्रिया में विधुत उर्जा , प्रकाश उर्जा में बदल जाती है।
  • कैमरा तो सभी ने देखा होगा और फोटो भी तो खींचा होगा तो इसमें प्रकाश उर्जा , रासायनिक उर्जा मे बदल जाती है।

किरण – प्रकाश जब चलता है तो रेखा में चलता है उसे ही किरण कहते हैं।

सोचो अगर बहुत सारा किरण चले तो उसे प्रकाशपुंज कहते हैं।

प्रकाशपुंज के प्रकार :

ए) समांतर प्रकाशपुंज – जब सारे प्रकाश की किरण एक समान होता है।

ब) अभिसारी प्रकाशपुंज – जब सरे प्रकाश कि किरण एक बिन्दू पर आकर मिलती है।

स) अपसारी प्रकाशपुंज – जब सारे प्रकाश कि किरण एक बिन्दू से निकलकर बहुत सारे दिशा में जाती है।

आत्मदीप पदार्थ

वैसा पदार्थ जो खुद प्रकाश देता है।

     उदाहरण : सुर्य, तारे दीपक

अपवाद : चन्द्रमा ( सुर्य के प्रकाश से )

अदीप्त – जिसके पास खुद का प्रकाश नहीं होता है।

           उदाहरण : सभी निर्जीव वस्तुएँ

प्रकाशीय माध्यम – प्रकाश जिस क्षेत्र से हमारी आँखो तक आती है , उसे प्रकाशीय माध्यम कहते है।

प्रकाशीय माध्यम के प्रकार(Type of optical Medium )

1 . समांगी प्रकाशीय माध्यम – इसमें गुण और बनावट समान होता हैं।

 उदाहरण : जल और काँच

2 . विषमांगी प्रकाशीय माध्यम – इसमें गुण और बनावट समान नहीं होते हैं।

     उदाहरण : हवा का मिश्रण (गर्म या ठंडा )

पारदर्शी – जिस पदार्थ से प्रकाश आर पार हो जाता हैं , उसे पारदर्शी पदार्थ कहा जाता है।

  उदाहरण : हवा , पानी इत्यादि

अपारदर्शी – जिस पदार्थ से प्रकाश आर – पार नहीं होता है उसे अपारदर्शी पदार्थ कहा जाता है।

   उदाहरण : ईंट इत्यादि

पारभाषी – जिस पदार्थ से प्रकाश कुछ बाहर निकल पाता है और कुछ अंदर रह जाता है। उसे पारभाषी पदार्थ कहा जाता है।

         उदाहरण : कागज मे लगा हुआ तेल

छाया – जब प्रकाश निकलता है तो जितने भी अपारदर्शी पदार्थ है , उसका छाया बनता है , जिसे छाया कहा जाता है ।

कहीं पर अंधेरा का होना प्रकाश के ना होने का सबसे बड़ा कारण है।

प्रकाश का परावर्तन (Reflection of light)

प्रकाश के किसी सतह से टकराकर उसी माध्यम में वापस आना प्रकाश का परावर्तन कहलाता है।

  क्या आपको मालुम है जिस सतह से टकराकर वापस आता है उसे परावर्तक सत्तह ( समतल दर्पण होता है ) कहा जाता है।

चाँदी सबसे अच्छा परावर्तक होता है।

परावर्तक सतह की प्रकृति दो तरह की होती है।

1 . नियमित परावर्तन – प्रकाश जब चिकनी और चमकदार सतह पर पड़ती है , तो वह अच्छे से परिवर्तित होती है , जिसे नियमित परावर्तन कहा जाता है।

2 . अनियमित परावर्तन – प्रकाश जब किसी रुखड और चमकदार सतह पर पड़ती है , तो उसे अनियमित परावर्तन कहा जाता है।

प्रकाश का परावर्तन नियम

प्रकाश का समतल दर्पण के परावर्तक सतह पर पड़ना और अच्छे से परिवर्तित होना ही प्रकाश का परावर्तन नियम कहलाता है।

आपतित किरण – किरण का दर्पण के सतह पर पड़ना आपतित किरण कहलाता है। क्या आपको मालुम है आपतित किरण जिस बिन्दू पर पड़ती है , उसे आपतन बिन्द कहा जाता है।

परावर्तित किरण – किरण का दर्पण के सतह से टक्कर खाके वापस जाना परावर्तित किरण कहलाता है।

आपतन बिन्दू पर एक 90 डिग्री का रेखा होता है जिसे अभिलम्ब कहा जाता है।

आपतन कोण – आपतित किरण , अभिलम्ब तथा आपतन बिन्दु तीनो को मिलाकर एक कोण बनता है , जिसे आपतन कोण कहा जाता है ।

आपतित किरण + अभिलम्ब + आपतन बिन्दू = आपतन कोण

परावर्तन कोण – परावर्तित किरण , अभिलम्ब तथा आपतन बिन्दू तीनो को मिलाकर एक कोण बनता है , जिसे परावर्तन कोण कहा जाता है ।

परावर्तित किरण + अभिलम्ब + आपतन बिन्दू = परावर्तन कोण

प्रतिबिम्ब – किसी वस्तु से आ रही प्रकाश कि किरण परावर्तन या अपवर्तन के बाद एक बिन्दू पर ( संसृत ) या उससे दुर भागती है ( असंसृत ) हो जाती है, जिसे प्रतिबिम्ब कहा जाता है। 

क्या आप जानते है कि जब प्रतिबिम्ब एक ही बिन्दू पर ( संसृत ) तो उसे वास्तविक प्रतिबिम्ब कहा जाता है , तथा जब प्रतिबिम्ब एक ही बिन्दू से दुर भागती है ( असंसृत ) तो उसे काल्पनिक प्रतिबिम्ब कहा जाता है।

वास्तविक प्रतिबिम्ब के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जनकारी

  • यह किरण के वास्तविक ( सच वाली ) कटान से बनता है।
  • इसका Image हमेशा उल्टा ही बनता है।
  • इसे पर्दा पर आसानी से ले सकते है ।
  • यह शीशा के सामने बनता है।

काल्पनिक प्रतिबिम्ब के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी

  • यह किरण के काल्पनिक ( बस कल्पना ) कटान से बनता है
  • इसका Image हमेशा सीधा ही बनता है ।
  • इसे पर्दा पर नहीं ले सकते है ।
  • यह शीशा के पीछे बनता है।

क्या आप जानते हैं कि समतल दर्पण मे IMAGE कैसे बनता है।

  • काल्पनिक
  • पर्दा पर नहीं ले सकते
  • जितना आकार का वस्तु उतना आकार का उसका Image
  • जितना वस्तु दर्पण के सामने उतना उजका Image पीछे

विपरिवर्तन

अगर किसी कारण वश वस्तु का Image 180 डिग्री ( क्षैतिज अक्ष )पर घुम जाता है , तो नीचे वाला भाग उपर ( पैर ) एवम् उपर वाला भाग नीचे ( सिर ) दिखाई देता है , इस घटना को प्रतिबिम्ब का विपरिवर्तन कहा जाता है।

पार्श्व विपरिवर्तन

अगर किसी कारण वश वस्तु का Image 180 डिग्री ( उदग्र अक्ष ) पर घुम जाता है , तो दायाँ भाग बाएं में तथा बायाँ भाग दाएँ में दिखाई देता है , इस घटना को प्रतिबिम्ब का पार्श्व विपरिवर्तन कहा जाता है।

दर्पण –यह चमकीला सतह होता है जिसका एक सतह रंगा होता है और वह प्रकाश को अच्छे से परिवर्तित करता है दर्पण कहलाता है ।

दर्पण के प्रकार (Type of mirror)

समतल दर्पण –जिसका परावर्तक सतह समतल होता है

गोलीय दर्पण –जिसका परावर्तक सतह गोल होता है

परवलियक दर्पण –जिसका परावर्तक सतह पूरा तरीके से गोल नहीं होता है।

अवतल दर्पण –जिसका परावर्तक सतह धासा होता है ।

उत्तल दर्पण –जिसका परावर्तक सतह उभरा होता है |

गोलीय दर्पण से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

वक्रता केंद्र –गोलीय दर्पण के खोखले वाले भाग का बीच वाला बिंदु वक्रता केंद्र कहलाता है । इसे ‘C’ से सूचित किया जाता है ।

ध्रुव –गोलीय दर्पण के किसी एक सतह के मध्य बिंदु को ध्रुव कहा जाता है । इसे ‘P’ से सूचित किया जाता है |

मुख्य अक्ष –दर्पण में जो रेखा वक्रता केंद्र तथा ध्रुव को मिलाती है उस मुख्य अक्ष का जाता है ।

दर्पण का द्वारक –दर्पण की जो चौड़ाई होती है , उसे दर्पण का द्वारक कहा जाता है ।

वक्रता त्रिज्या –गोलीय दर्पण के खोखले वाले भाग का त्रिज्या , वक्रता त्रिज्या कहलाता है ।

अवतल दर्पण का मुख्य फोकस –मुख्य अक्ष के समांतर आपतित किरण परावर्तन के बाद एक बिंदु पर आकर मिलती है , जिसे अवतल दर्पण का मुख्य फोकस कहा जाता है ।इसे F से सूचित किया जाता है ।

अवतल दर्पण में ध्रुव और मुख्य फोकस के बीच की दूरी फोकस दूरी होती है । इसे f से सूचित किया जाता है |

उत्तल दर्पण का मुख्य फोकस –मुख्य अक्ष के समांतर आपतित किरण परावर्तन के बाद एक ही बिंदु से निकलते हुए दिखाई देती है , जिसे उत्तल दर्पण का मुख्य फोकस कहा जाता है ।

उत्तल दर्पण में ध्रुव और मुख्य फोकस के बीच की दूरी फोकस दूरी होती है , इसे ’f’ से दर्शाया जाता है

क्या आप जानते हैं कि गोलीय दर्पण की जो फोकस दूरी होती है , वह वक्रता त्रिज्या की आधी होती है ।

         अब इसे हम सिंबॉल के आधार पर देखते हैं ,

             फोकस दुरी (f) = वक्रता त्रिज्या ( R )

               f= R/2 या R = 2f ( अवतल दर्पण तथा उतल दर्पण दोनो मे समान फॉर्मुला होता है )

अवतल दर्पण में प्रतिबिंब कैसे बनता है ?

  • जब प्रकाश की किरण प्रधान अक्ष के समांतर आती है तो परावर्तन के बाद फोकस से गुजरती है ।
  • प्रकाश की किरण वक्रता त्रिज्या से जाती है ,तो परावर्तित होकर वापस उसी दिशा में लौट जाती है ।
  • जब प्रकाश की किरण फोकस से गुजरती है तो परावर्तन के बाद प्रधान अक्ष के समांतर हो जाती है ।

आइए जानते हैं कि दर्पण में प्रतिबिंब का निर्माण कैसे होता है ?

अवतल दर्पण में ,

1.    जब किसी वस्तु को हम फोकस तथा ध्रुव के बीच रखते हैं ,तो

                         प्रतिबिम्ब – दर्पण के पीछे

                         प्रकृति – काल्पनिक सीधा

                         आकार – वस्तु से बड़ा

 2 .  अगर किसी वस्तु को फोकस पर रखे तो ,

                                  प्रतिबिम्ब – अनंत पर

                                  प्रकृति – वास्तविक उल्टा

                                  आकार – वस्तु सेबहुत बड़ा

  3 .अगर किसी वस्तु कोफोकस और वक्रता केंद्र पर रखे तो ,

                   प्रतिबिम्ब – वक्रता केन्द्र तथा अनंत के बीच

                   प्रकृति – वास्तविक उल्टा

                   आकार – वस्तु से बड़ा

4.अगर किसी वस्तु को वक्रता केंद्र पर रखे तो ,

                             प्रतिबिम्ब – वक्रता केन्द्र पर

                             प्रकृति – वास्तविक उल्टा

                             आकार – वस्तु के बराबर

5.अगर किसी वस्तु को वक्रता केंद्र और अनंत के बीच रखे तो ,

           प्रतिबिम्ब – वक्रता केन्द्र एवम् फोकस के बीच

           प्रकृति – वास्तविक उल्टा

           आकार – वस्तु से छोटा

6.चलो किसी वस्तु को अनंत पर रखते हैं तो ,

                                  प्रतिबिम्ब – फोकस पर

                                  प्रकृति – वास्तविक उल्टा

                                  आकार – वस्तु से बहुत छोटा

उतल दर्पण में ,

1.अगर किसी वस्तु को अनंत पर रखते हैं तो ,

                                 प्रतिबिम्ब फोकस पर

                                 प्रकृति – काल्पनिक सीधा

                                 आकार – वस्तु से बहुत छोटा

    2.अगर वस्तु को अनंत और ध्रुव के बीच रखते हैं तो ,

                     प्रतिबिम्ब – ध्रुव और फोकस के बीच

                     प्रकृति – काल्पनिक सीधा

                     आकार – वस्तु से छोटा

चिन्ह परिपाटी – गोलीय दर्पण में प्रतिबिंब कभी दर्पण के सामने तो कभी पीछे बनता है ,इस में अंतर स्पष्ट करने वाले यंत्र को चिन्ह परिपाटी कहा जाता है ।

इससे संबंधित नियम इस प्रकार है –

  • सभी दूरियां ध्रुव से मापा जाना चाहिए ।
  • आपतीत प्रकाश की दिशा की दूरी धनात्मक होती है ।
  • आपतीत प्रकाश की उल्टा दिशा की दूरी ऋणात्मक होती है ।
  • मुख्य अक्ष से ऊपर जो लंबवत दूरी होती है वह धनात्मक होती है ।
  • मुख्य अक्ष से नीचे जो लंबवत दूरी होती है वह ऋणात्मक होती है ।

दर्पण के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी

  • वस्तु दूरी(u) अवतल तथा उत्तर दोनों में ऋणात्मक होती है ।
  • अवतल दर्पण की फोकस दूरी(f) हमेशा ऋणात्मक होती है ।
  • उत्तल दर्पण की फोकस दूरी(f) हमेशा धनात्मक होती है ।
  • अवतल दर्पण की वक्रता त्रिज्या(R) ऋणात्मक होती है ।
  • उत्तल दर्पण की वक्रता त्रिज्या(R) धनात्मक होती है ।
  • अवतल दर्पण में प्रतिबिंब दूरी कभी धनात्मक तो कभी ऋण आत्मक हो सकती है ।

    धनात्मक तब होती है जब प्रतिबिंब दर्पण के पीछे बनता है 

               अर्थात  ( u < f )

     ऋणात्मक तब होती है जब प्रतिबिंब दर्पण के सामने बनता है ।

             अर्थात ( u > f )

दर्पण सुत्र – ऐसा सुत्र जो वस्तु दुरी (u) , प्रतिबिम्ब दुरी(v) तथा फोकस पुरी(f) में संबध को बताता है।

                       1/v +1/u =1/f

आइए हम जानते हैं की अवतल दर्पण तथा उत्तल दर्पण में दर्पण फार्मूला क्या होता है ।

अवतल दर्पण में ,

                       1/v +1/u =2/R  (f =R/2)

उत्तल दर्पण में ,

                     1/v +1/u =1/f=2/R

अनुबद्ध फोकस – दर्पण या लेंस के प्रधान अक्ष पर दो ऐसी बिंदु ए होती है , जिनमें से किसी एक बिंदु पर वस्तु रखने पर उसका प्रतिबिंब दूसरे बिंदु पर प्राप्त होता है उसे अनुबद्ध फोकस कहा जाता है |

आवर्धन –प्रतिबिंब की ऊंचाई तथा वस्तु की ऊंचाई का अनुपात आवर्धन कहलाता है ।इसे ‘m’ से सूचित किया जाता है ।

              m = h2/h1

h1 =वस्तु की ऊंचाई       h2 =प्रतिबिंब की ऊंचाई

आवर्धन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी

  •  प्रतिबिंब काल्पनिक एवं सीधा तभी होता है जब आवर्धन धनात्मक हो
  • प्रतिबिंब वास्तविक एवं उल्टा तभी होता है जब आवर्धन त्रचणात्मक हो
  • अवतल दर्पण का आवर्धन धनात्मक या ऋणाcमक हो सकता है
  • उत्तल दर्पण का आवर्धन हमेशा धनात्मक होता है

            यदि ,

               आवर्धन(m>1) तब प्रतिबिम्ब , वस्तु से बडा

          m= 1 तब प्रतिबिम्ब , वस्तु के बराबर

         m<1 तब प्रतिबिम्ब , वस्तु से छोटा

आवर्धन का व्यंजन निकालना

     अवतल दर्पण में –

                          m =h2/h1 = -v/u

      उत्तल दर्पण में – 

                        m =1-v/f

आइए हम आसान भाषा में समतल , अवतल तथा उत्तल दर्पण को पहचानते हैं ।

1.देखकर:

  • यदि प्रतिबिंब हमेशा सीधा तथा वस्तु के बराबर है , तो वह समतल दर्पण ।
  • यदि प्रतिबिंब सीधा तथा वस्तु से बड़ा बनता है , तो अवतल दर्पण ।
  • यदि प्रतिबिंब हमेशा सीधा तथा वस्तु से छोटा बनता है , तो उत्तल दर्पण ।

2.छूकर:   

  •  यदि दर्पण को छूने पर परावर्तक सतह समतल है , तो समतल दर्पण ।
  •  यदि दर्पण को छूने पर परावर्तक सतह धसा है , तो अवतल दर्पण ।
  • यदि दर्पण को छूने पर परावर्तक सतह उभरा है , तो उत्तल दर्पण ।

क्या आप जानते हैं दर्पण का उपयोग

1.अवतल दर्पण – जो हमारे घर में सोलर कुकर होता है उसमें , हजाम वालों के दुकान में , गाड़ियों के आगे वाला हेड लाइट में

2.उत्तल दर्पण – गाड़ियों में साइड में जो शीशा होता है उसमें ,  बाइक में साइड मिरर के रूप में

प्रकाश का अपवर्तन(Refraction of light)

जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाता है , तो उसके दिशा में परिवर्तन हो जाता है जिसे प्रकाश का अपवर्तन कहा जाता है ।

सघन माध्यम – इसमें प्रकाश का वेग कम होता है ।

विरल माध्यम – इसमें प्रकाश का वेग अधिक होता है ।

आपतीत किरण – दूसरे माध्यम की तरफ गमन करने वाली प्रकाश की किरण आपतित किरण कहलाती है ।

अपवर्तीत किरण –दूसरे माध्यम में प्रवेश करने पर  अपनी पूर्व पथ से विचलित किरण को अपवर्तीत किरण कहते हैं ।

निर्गत किरण –दूसरे माध्यम से पुनः पहले माध्यम में निकलने वाली किरण को निर्गत किरण कहते हैं ।

प्रकाश का एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाने पर विचलन

  • प्रकाश की किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में जाती है , तो अविलंब की ओर मुड़ जाती है ।
  • प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है , तो अभिलंब से दूर भागती है ।
  • प्रकाश की किरण अपवर्तक सतह पर लंबवत आती है , तो बिना किसी  विचलन के दूसरे माध्यम में आसानी से प्रवेश कर जाती है ।

प्रकाश के अपवर्तन का नियम

1. आपतित किरण , अपवर्तीत किरण , तथा आपतम बिन्द पर खिंचा गया लम्ब एक ही तल में होता है।

2.स्नेल का नियम -आपतन कोण की ज्या आवर्तन कोण की ज्या का अनुपात एक नियतांक होता है ।

                          अर्थात ,

                             Sin i/Sin r =u ( नियतांक )

निर्गत कोण – निर्गत किरण और अभिलंब के बीच के कोण को निर्गत कोण कहते हैं इसे ‘e’ सूचित किया जाता है ।

पार्श्व विस्थापन – किसी आयताकार सिल्ली से अपवर्तन की स्थिति में निर्गत किरण और आपतित किरण के बीच की लंबवत दूरी को पार्श्व विस्थापन कहते हैं ।

                       जहाँ ,

                           x = पार्श्व विस्थापन

                           e =निर्गत कोण

क्रांतिक कोण –सघन माध्यम में आपतन कोण के जिस मान के लिए विरल माध्यम में अपवर्तन कोण का मान 90 डिग्री हो जाता है उस कोण को उस सघन माध्यम के लिए क्रांतिक कोण कहते हैं।

अपवर्तनांक

निर्वात या वायु में तथा किसी माध्यम में प्रकाश की चाल के अनुपात को अपवर्तनांक कहते हैं । इसे n या u से सूचित किया जाता है ।

                       अर्थात

                  अपवर्तनांक(n) =निर्वात में प्रकाश की चाल /किसी माध्यम में प्रकाश की चाल (n =c/v)

पूर्ण आंतरिक परावर्तन

जब आप तन कोण के मान को क्रांतिक कोण से बढ़ाते हैं तो प्रकाशीय किरण जिस माध्यम से चली होती है पुनः उसी माध्यम में लौट आती है इस घटना को ही पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते हैं ।इस घटना के फलस्वरूप  ही रेगिस्तान में मृग मरीचिका तथा हीरा का अत्यधिक चमकना है ।

लेंस

वैसा पारदर्शी माध्यम जिससे प्रकाश का अपवर्तन 

नियमित रूप से होता है लेंस कहलाता है ।

इसके दो प्रकार होते हैं ।

समतल लेंस

जिस लेंस का अपवर्तक सतह समतल होता है समतल लेंस कहलाता है ।

गोलीय लेंस

जिस लेंस का अपवर्तक सतह गोलीय होता है गोलीय  लेंस कहलाता है ।

गोलीय लेंस का प्रकार

उत्तल लेंस

जिस गोलीय लेंस के बीच का भाग मोटा तथा किनारे का भाग पतला होता है उत्तल लेंस कहलाता है ।

अवतल लेंस

जिस गोलीय लेंस के बीच का भाग पतला तथा किनारे का भाग मोटा होता है अवतल लेंस कहलाता है

गोलीय लेंस से संबंधित परिभाषाएं

प्रकाशीय केंद्र

गोलीय लेंस के अंदर स्थित वह बिंदु जिस से गुजरने पर निर्गत किरण आपतित किरण के समांतर हो जाता है प्रकाशीय केंद्र कहलाता है ।इसे O से सूचित किया जाता है 

मुख्य फोकस

प्रधान अक्ष के समांतर चली प्रकाशीय किरण गोलीय लेंस के अपवर्तन के बाद प्रधान अक्ष को जिस बिंदु पर काटती है या काटती हुई प्रतीत होती है मुख्य फोकस कहलाता है।गोलीय लेंस में इसकी संख्या 2 होती है

उत्तल लेंस की फोकस दूरी वास्तविक तथा अवतल लेंस की फोकस दूरी काल्पनिक होती है ।

प्रथम मुख्य फोकस

प्रधान अक्ष पर स्थित वह बिंदु जिससे निकली प्रकाशीय किरण लेंस से अपवर्तन के बाद प्रधान अक्ष के समांतर हो जाता है प्रथम मुख्य फोकस कहलाता है ।

द्वितीय मुख्य फोकस

प्रधान अक्ष के समांतर चली प्रकाशीय किरण लेंस से अपवर्तन के बाद प्रधान पक्ष को जिस बिंदु पर काटती है या करती हुई प्रतीत होती है द्वितीय मुख्य फोकस कहलाता है ।

फोकस दूरी

लेंस में प्रकाशीय केंद्र और मुख्य फोकस के बीच की दूरी को फोकस दूरी कहते हैं । इसे f से सूचित किया जाता है

क्या आप जानते हैं उत्तल लेंस को अभिसारी लेंस क्यों कहते हैं ?

उत्तल लेंस जिन प्रिज्म खंडों से बना होता है उसका आधार प्रधान पक्ष की ओर होता है फलतः  प्रधान पक्ष के समांतर चली प्रकाशीय किरण लेंस से अपवर्तन के बाद प्रधान अक्ष की ओर मुड़ जाता है तथा एक ही बिंदु पर मिलता है इसलिए उत्तल लेंस को अभिसारी लेंस कहा जाता है ।

क्या आप जानते हैं उत्तल लेंस को अपसारी लेंस क्यों कहा जाता है

अवतल लेंस जिन प्रिज्म में खंडों से बना होता है उनका आधार प्रधान पक्ष से बाहर की ओर होता है जिसके कारण प्रधान अक्ष के समांतर चली प्रकाशीय किरण लेंस से अपवर्तन के बाद प्रधान पक्ष से दूर भागता है जिसे देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि ये किरणे प्रधान अक्ष के किसी नियत बिंदु से निकल रही है इसलिए इसे अपसारी लेंस कहते हैं ।

लेंस को पहचानने की विधि

  • यदि वस्तु को लेंस के करीब लाने पर बना प्रतिबिंब काल्पनिक सीधा और वस्तु के बराबर हो तो वह समतल लेंस होता है ।
  • यदि वस्तु को लेंस के करीब लाने पर बना प्रतिबिंब काल्पनिक सीधा और वस्तु से बड़ा हो तो वह उत्तल लेंस होता है ।
  • यदि वस्तु को लेंस के करीब लाने पर बना प्रतिबिंब काल्पनिक सीधा और वस्तु से छोटा हो तो वह अवतल लेंस होता है ।

उत्तल लेंस का उपयोग

सरल सूक्ष्मदर्शी में ,संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में ,खगोलीय दूरबीन में अभिदृश्यक  के रूप में ,दीर्घ दृष्टि दोष को दूर करने में

अवतल लेंस का उपयोग

खगोलीय दूरबीन में नेत्रिका लेंस के रूप में ,गैलीलियो दूरबीन में ,निकट दृष्टि दोष के उपचार में

उत्तल लेंस में प्रतिबिंब की स्थिति

  • जब वस्तु लेंस से अनंत दूरी पर स्थित हो तो उसका प्रतिबिंब द्वितीय मुख्य फोकस पर वास्तविक उल्टा और वस्तु से बहुत छोटा बनता है
  • जब वस्तु प्रथम मुख्य फोकस के दुगुने दूरी तथा अनंत के बीच स्थित हो तो उसका प्रतिबिंब द्वितीय मुख्य फोकस और उसके दुगुने दूरी के बीच वास्तविक उल्टा तथा वस्तु से छोटा बनता है
  • जब वस्तु प्रथम मुख्य फोकस के दुगुने दूरी पर स्थित हो तो उसका प्रतिबिंब द्वितीय मुख्य फोकस के दुगुने दूरी पर वास्तविक उल्टा तथा वस्तु के बराबर बनता है
  • जब वस्तु प्रथम मुख्य फोकस और उसके दुगुने दूरी के बीच स्थित हो तो उसका प्रतिबिंब द्वितीय मुख्य फोकस के दुगुने दूरी और अनंत के बीच वास्तविक उल्टा और वस्तु से बड़ा बनता है
  • जब वस्तु प्रथम मुख्य फोकस पर स्थित हो तो उसका प्रतिबिंब अनंत दूरी पर वास्तविक उल्टा और वस्तु से बहुत बड़ा बनता है
  • जब वस्तु प्रकाशीय केंद्र और प्रथम में मुख्य फोकस के बीच स्थित हो तो उसका प्रतिबिंब वस्तु के ओर ही काल्पनिक सीधा और वस्तु से बड़ा बनता है

अवतल लेंस में प्रतिबिंब की स्थिति

  • जब वस्तु लेंस से अनंत दूरी पर स्थित हो तो उसका प्रतिबिंब द्वितीय मुख्य फोकस पर काल्पनिक सीधा और वस्तु से बहुत छोटा बनता है
  • जब वस्तु प्रकाशीय केंद्र और अनंत के बीच स्थित हो तो उसका प्रतिबिंब द्वितीय मुख्य फोकस और प्रकाशीय केंद्र के बीच काल्पनिक सीधा और वस्तु से छोटा बनता है

लेंस सूत्र

गोलीय लेंस में वस्तु दूरी प्रतिबिंब दूरी तथा फोकस दूरी में संबंध बताने वाला सूत्र लेंस सूत्र कहलाता है ।इस का गणितीय रूप 1/v-1/u=1/f

उत्तल और अवतल लेंस में लेंस फार्मूला समान होता है

आवर्धन

गोलीय लेंस में प्रतिबिंब की ऊंचाई तथा वस्तु की ऊंचाई के चिन्ह सहित अनुपात को आवर्धन कहते हैं ।

m =h2/h1

आवर्धन के लिए व्यंजक

v/u =1-v/f

लेंस की छमता

गोलीय लेंस में उसके फोकस दूरी के व्युत्क्रम को लेंस की छमता कहते हैं । इसे p सूचित किया जाता है

p =1/ फोकस दूरी ( मीटर में )

p =1/f ( m )

इस का s/i मात्रक डाइऑप्टर  होता है जिसे D से सूचित किया जाता है

1 डाइऑप्टर क्या है

1 मीटर फोकस दूरी वाले लेंस की छमता 1 डाइऑप्टर कहलाता है ।

1 डाईऑप्टर =1/ मीटर या 1D =1m-¹( एक प्रति मीटर)

  • जिस लेंस की फोकस दूरी जितनी ही अधिक होती है वह किरणों को अपवर्तन के बाद उतना ही कम मोड़ पाता है अर्थात उसकी क्षमता उतना ही कम होती है इसके ठीक विपरीत जिस लेंस की फोकस दूरी जितनी ही कम होती है वह किरणों को उतना ही अधिक मोड़ पाता है अर्थात उसकी लेंस की छमता उतना ही अधिक होती है
  • उत्तल लेंस की छमता धनात्मक तथा अवतल लेंस की छमता ऋणात्मक होती है क्योंकि उत्तल लेंस का फोकस दूरी धनात्मक होती है तथा अवतल लेंस की फोकस दूरी ऋणात्मक  होती है

समतल लेंस उत्तल लेंस तथा अवतल लेंस की पहचान की विधि

  • यदि स्पर्श करने पर लेंस की मोटाई हर जगह एक समान हो तो वह समतल लेंस होता है ।
  • यदि  स्पर्श करने पर लेंस की बीच का भाग मोटा तथा किनारे का भाग पतला हो तो वह उत्तल लेंस होता है
  • यदि स्पर्श करने पर लेंस के बीच का भाग पतला तथा किनारे का भाग मोटा हो तो वह अवतल लेंस होता है

निष्कर्ष

हमने इस chapter 1 में सभी point को cover किया है जिसमे सभी तरह के परिभाषाओं को आसान भाषा में समझाया है। आप इस नोट्स की सहायता से अपने परिक्षा की तैयारी आसानी से कर सकते है हम आप के लिए ऐसे ही content ले के आते रहेंगे

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