Biology class 10th chapter 1 Notes in Hindi | जैव प्रक्रम (Life Processes) Best Biology notes in Hindi

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Table of Contents

Biology class 10th chapter 1 Notes in Hindi

Biology class 10th chapter 1 Notes in Hindi
Biology class 10th chapter 1 Notes in Hindi

हम आपके लिए इस chapter जैव प्रक्रम(Life Processes) में कम समय में परिक्षा की तैयारी करने के लिए शाँट नोट्स लाए है। जिनसे आप अपनी परिक्षा की तैयारी कम से कम समय में कर पायेंगे । इस पोस्ट में हमने इस chapter का हरेक point को आसान भाषा में cover कियें है जो आप कभी नहीं भुल पाएंगे |

जैव प्रक्रम (Life Processes)

शरीर के वे सभी क्रियाएं जो शरीर को टुट-फूट से बचाती है और सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करती है जैव प्रक्रम कहलाती है 

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जैव प्रक्रम के प्रकार

पोषण – सजीवों का भोजन ग्रहण करना तथा उसके द्वारा शरीर को निर्माण एवं शारीरिक क्रियाओं का संचालन करना पोषण कहलाता है

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पोषण के प्रकार

स्वपोषण-वैसे जीव जो भोजन के लिए दूसरे जीवो पर निर्भर नहीं रह कर अपना भोजन स्वयं संश्लेषित करते हैं उसे स्वपोषण कहते हैं

पर पोषण – परपोषण वह प्रक्रिया है जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं संश्लेषित न कर किसी न किसी रूप से दूसरे स्रोतों से प्राप्त करते हैं जैसे मनुष्य जीव जंतु

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परपोषण के प्रकार

मृतजीवी परपोषण –वैसे जीव जो अपना भोजन मृत एवं क्षय शरीर से प्राप्त करते हैं मृतजीवी पर पोषण कहलाता है जैसे कवक फफुदी कुकुरमुता इत्यादि

परजीवी परपोषण – पोषण की वह विधि जीसमे जीव किसी दुसरे जीव से अपना भोजन एवं अवास लेते है और उन्हीं के पोषण स्रोतो का अवशोषण करते है परजीवी परपोषण कहलाते है। जैसे मच्छरों मे पाये जाने वाले प्लाज्मोडियम मनुष्य के आँत में पाए जाने वाले फीताकृमि

प्राणीसम्मोज परपोषण -पोषण की वह विधि जिसमें जीव ऊर्जा की प्राप्ति पादप एवं प्राणी स्रोतों से प्राप्त जैव पदार्थों के अंतर ग्रहण एवं पाचन द्वारा की जाती है प्राणीसम्मोज परपोषण कहलाता है जैसे मनुष्य अमीबा एवं सभी जीव इत्यादि

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भोजन (Food)

वे सभी आवश्यक पदार्थ जो किसी जीव के शरीर में अवशोषित होने के बाद शरीर की रचना टूट-फूट की मरम्मत वृद्धि एवं विकास जनन क्षमता का विकास इत्यादि का कार्य करता है परंतु जीव शरीर को कोई हानि नहीं पहुंचाता है भोजन कहलाता है

प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis)

वह प्रक्रम जिसमें सजीव पेड़ पौधे द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड जल एवं पर्ण हरित सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ग्लूकोज का संश्लेषण करना प्रकाश संश्लेषण कहलाता है समीकरण 6CO2+6H2O→C6H12O6+6O2

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हरित लवक

पति में हरे रंग की अंडाकार रचनाएं होती है जिन्हें हरित लवक कहते हैं

रंजक

रंजक वे अणु होते हैं जो सूर्य के दृश्य प्रकाश की एक विशेष तरंगदैर्ध्य वाली किरणों को अवशोषित करते हैं

पौधे हरे रंग के दिखाई देते हैं क्यों ?

पत्तियों में पाए जाने वाली रंजक प्रायः नीले एवं लाल क्षेत्र में प्रकाश को ही अवशोषित करते हैं तथा वे हरे रंग के प्रकाश को परावर्तित कर देते हैं इसलिए पौधे हरे रंग के दिखाई देते हैं

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पर्णहरित के घटक

पर्णहरित ए → नीला , हरा  जैथोफिल→ पिला

पर्णहरित बी→ पिला , हरा  कैरोटीन→ नारंगी

एंजाइम (Enzyme)

शरीर में पाई जाने वाली उत्प्रेरक पदार्थ को एंजाइम कहते हैं

रंध्र –पतियों की सतह पर पाए जाने वाले सुक्ष्म जीव जो गैसीय विनिमय में सहायक होते हैं रंध्र कहलाते  हैं

उपापचय

कोशिका के अंदर होने वाले समस्त जैविक रसायनिक सम्मिलित रूप को उपापचय कहते हैं

प्रकाश संश्लेषण में ऑक्सीजन निकलती है कैसे ?

सर्वप्रथम जलीय पौधे हाइड्रिला की कुछ टहनियों को तोड़कर जल से भरे हुए बीकर में डालेंगे फिर एक कीप को सावधानीपूर्वक बीकर के अंदर उल्टा रख देंगे जिससे हाइड्रिला के टहनियों को पूरी तरह से ढक लेता है फिर इस प्रक्रिया को धूप में रखेंगे इन सभी प्रक्रियाओं के बाद बीकर को कुछ देर के बाद हम देखेंगे की टहनियों के पास से गैस के बुलबुले उड़ते दिखाई देंगे जिससे परीक्षण करने के बाद यह मालूम पड़ता है कि यह ऑक्सीजन गैस है इस प्रकार प्रकाश संश्लेषण का निकलना प्रमाणित करेंगे

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अमीबा में पोषण किस प्रकार होता है

अमीबा अपना भोजन कुट्पाद के द्वारा ग्रहण करता है कुटपाद भोजन को घेरकर एक खाद्यद्यानी बनाते हैं और स्वयं गायब हो जाते हैं कोशिका द्रव्य में उपस्थित पाचक एंजाइम खाद्यद्यानी में प्रवेश करती है और भोजन को पचाते हैं खाद्यद्यानी कोशिका में भ्रमण करती रहती है और बचे हुए भोजन के कण विसरित होकर कोशिका द्रव्य में मिलते रहते हैं खाद्यद्यानी घूमते घूमते कोशिका की सतह से चिपक कर फट जाती है जिससे अनपच हुए भोजन बाहर निकल जाते हैं

प्रकाश संश्लेषण के लिए कच्ची सामग्री पौधा कहां से प्राप्त करता है

प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री को पौधा अलग-अलग स्रोतों से प्राप्त करता है जैसे पर्णहरित पति के हरित लवक से कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल से जल एवं खनिज लवण मृदा से

पाचन

वह क्रिया जिसमें एंजाइमों की सहायता से जटिल भोज्य पदार्थों को सरल अणुओ में अपगठित किया जाता है जिससे यह अवशोषित हो कर कोशिकाओं में प्रवेश कर सके पाचन कहलाता है

मनुष्य के पाचन तंत्र का भाग

आहार नाल –मनुष्य या अन्य जीवों में मुख गुहा से गुदाद्वार तक के बीच एक नली पाई जाती है जिसे आहार नाल कहते हैं इसकी लंबाई 8cm से 10cm तक होती है

आहार नाल के भाग

मुख गुहा –आहार नाल का पहला भाग है यह ऊपरी तथा निचले जबड़ो से घिरी होती है मुख गुहा को बंद करने के लिए दो मांसल ओठ होते हैं इसमें जीभ तथा दांत भी होते हैं

जीभ – जीभ मुख गुहा के फर्श पर स्थित एक मांसल रचना है इसका अगला शिरा स्वतंत्र तथा पिछला सिरा फर्श से जुड़ा रहता है जीभ के ऊपरी सतह पर अनेक छोटे-छोटे रस अंकुर होते हैं जिन्हें स्वाद कलियां कहते हैं इन्हीं स्वाद कलियों के द्वारा मनुष्य को भोजन के विभिन्न स्वाद का ज्ञान होता है

दांत –दांत ऊपरी तथा निचली जबड़ो पर स्थित होता है प्रत्येक दांत जो जबड़ो के मसूड़ों से जुड़ा रहता है दांत के 3 भाग होते हैं जड़ या मुल , ग्रीवा या गर्दन , शिखर या शिर्व

दांत के प्रकार

कर्तनक      भेदक   अग्रचवर्णक    चवर्णक

दाँतो के उपर एक चमकिली और कठोर परत पायी जाती है जिसे इनैमल कहते है।

दन्त अस्थिक्षय

जब कोई व्यक्ति मीठी चीज जैसे मिठाई चॉकलेट आइस्क्रिम इत्यादि खाते है तथा खाने के बाद अपनी दाँतो को अच्छी तरफ साफ नही करते है तब ये चीज हमारी दाँतो से चिपक जाती है इनमे स्थित शक्कर पर बैक्ट्रिया रासायनिक क्रिया करके अम्ल बनाते है यह अम्ल दाँत के बाहरी परत पर क्रिया करके उसे नर्म बना देते है तथा धीरे-धीरे उस स्थान पर छिद्र बन जाता है जिसे दन्त अस्थिक्षय कहते है।

दन्त पलांक – जब बैक्ट्रिया तथा भोजन के महिन कण दाँत से चिपक कर एक परत का निर्माण कर देते है जिन्हें दन्त पलांक कहा जाता है।

ग्रसनी – मुखगुहा का पिछला भाग ग्रसनी कहलाता है इसमे दो छिद्र होते है निगल द्वार जो आहारनाल के अगले भाग में खुलती है तथा कंठ द्वार जो श्वास नली में खुलती है

एपिग्लौटिस – कंठ द्वार के आगे एक पट्टी जैसी रचना होती है जिसे एपिग्लौटिस कहते है यह पट्टी भोजन के कण को श्वासनली में जाने से रोकती है।

ग्रसिका या ग्रासनली – मुखगुहा मे लार से बना हुआ भोजन निगल द्वार के द्वारा ग्रासनली मे पहुंचता है भोजन के पहुँचते ही ग्रासनली के दिवार तरंग की तरह सिकुडना तथा सिथिलन शुरू करता है जिसे क्रमाकुंचन कहते है।

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अमाशय (Stomach)

अमाशय मोटी भिति वाली एक थैलीनुमा संरचना है यह चपटा एवम् U की आकृति का होता है यह आहारनाल का सबसे चौड़ा भाग होता है यह एक ओर ग्रसिका से भोजन ग्रहण करता है तथा दुसरी ओर छोटी आँत मे खुलता है साथ ही यह माध्यम को अम्लीय बनाता है जिसके पाचक रसो को क्रिया करने में सहायता मिलती है जठर रस प्रोटीन को सरल पदार्थो में विघटित कर देता है।

  • लार में टायली या लार एमाइलेज नामक इंजाइम पाया जाता है।
  • लार मे पाये जानेवाले टायलीन इंजाइम भोजन के कार्बोहाइड्रेट को तोडता है और माल्टोज मे बदल देता है।
  • जठर रस मे पेप्सिन तथा रेनिन नामक प्रोटीन पाचक इंजाहम पाये जाते है
  • रेनीन दुध के प्रोटीन को पचाता है अतः रेनीन केवल बच्चो में पाया जाता है
  • पेप्सिन अघुलनशील प्रोटीन को घुलनशील पेप्टॉन मे बदल देता है
  • अमाशय में भोजन का पाचन अम्लीय माध्यम में होता है
  • अमाशय की आंतरिक भिति में HCL बनता है जो जीवाणु नाशक होता है।

छोटी आंत

छोटी आंत आहारनाल का सबसे लम्बा भाग होता है यह बेलनाकार रचना है इसमें पाचन कि क्रिया पूर्ण होती है इसकी लम्बाई 6Cm तथा चौड़ाई 2.5cm होती है।

छोटी आंत के भाग

ग्रहणी -ग्रहणी छोटी आंत का पहला भाग होता है जो अमाशय की पाइलोरिक भाग के ठीक बाद शुरू होता है यह पायः C के आकार का होता है

जेनुनम -छोटी आत का मध्य भाग जेजूनम कहलाता है

इलियम –छोटी आत का पिछला भाग इलियम कहलाता है इसकी लंबाई 5.5cm होती है इसके दीवारों पर उंगली जैसी संरचना पाई जाती है इसे रसांकुर कहते हैं रसांकुर पचे हुए भोजन का अवशोषण करता है

बडी आँत

छोटी आत एक लंबी मोटी नली में खुलती है जिसे बड़ी आत कहते हैं इसमें जल का अवशोषण और अनपचे भोजन का बहिष्करण होता है

बडी आँत के भाग

कोलॉन    सीकम    मलाशय

एपेंडिक्स

सिकम के शिर्ष पर एक अंगुली जैसी रचना होती है जिसका शिरा बेद रहता है यह रचना एपेंडिक्स कहलाता है।

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सिकम

छोटी आंत तथा बडी आँत के जोड पर एक छोटी नली होता है जिसे सिकम कहते है।

मनुष्य के आहारनाल में एपेंडिक्स का कोई कार्य नही होता है इसे अवशोषी अंग भी कहते है।

सिकम सेलुलोज को पचाता है। शाकाहारी जनुओं मे छोटी आँत की लम्बाई अधिक होती है ताकि सेलुलोज का पाचन ठीक से हो सके जबकि मांशहारी जन्तुओं मे छोटी आंत कि लम्बाई कम होती है क्योंकि मांसाहारी भोजन का पाचन सरल होता है।

काइम

अमाशय में भोजन का स्वरूप गाढ़े लेई कि तरह होना काइम कहलाता है।

चाइल

काइम को तरल होने कि प्रक्रिया को चाइल कहते है।

स्वांगीकरण

अवशोषित भोजन को शरीर द्वारा उपयोग मे लाना स्वांगीकरण कहलाता है।

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पित (Bile)

पित गाढ़ा एवं हरा रंग का क्षारिय पदार्थ है इसमे कोई इंजाइम नही पाये जाते है।

पित के कार्य (Function of Bile)

पित अमाशय से ग्रहणी में आए अम्लीय काइम की अम्लीयता को नष्ट करके उसे क्षारिय बना देता है।

पित के लवणो कि सहायता से भोजन के वसा का विखंडन तथा पायसीकरण होता है ताकि वसा को तोडने वाले इंजाइम उस पर आसानी से क्रिया कर सके।

विलाई (Villi)

छोटी आँत के आंतरिक भिति पर असंख्य अंगुलियों जैसे उभार होते है जीसे विलाई कहते है

पाचन ग्रंथी

आहारनाल से संबंधित उन ग्रंथियों को जो भोजन पचाने में सहायता करते है पाचन ग्रंथि कहलाते है।

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पाचन ग्रंथि के प्रकार

आंतरिक ग्रंथि – वे ग्रंथि जो आहारनाल के दिवारो पर पाये जाते है सलेष्मा ग्रंथि तथा जठर ग्रंथि

बाध्य ग्रंथि – वे ग्रंथि जो आहारनाल के बाद स्थित होता है उसे बाध्य ग्रंथि कहा जाता है।

बाध्य ग्रंथि के प्रकार

लार ग्रंथि – मनुष्य के मुखगुहा में तीन जोड़ी लार ग्रंथि पायी जाती है जैसे पेरोटिड ग्रंथि सवमैडिबुलर ग्रंथि तथा सवलिंगल ग्रंथि इस प्रकार की ग्रंथियाँ भोजन में उपस्थित जो हानिकारक जीवाणु है उनकी कोशिका भिती पर आक्रमण करके उनको नष्ट कर देते है और भोजन को पचाने में कार्य करते है।

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यकृत ग्रंथि

यह शरीर की सबसे बडी ग्रंथि होती है इसका वजन लगभग1.5kg होता है यह उदर के उपरी दाहिने भाग मे स्थित होता है यह पित का स्राव करता है।

अग्नाशय

अमाशय के ठीक नीचे तथा ग्रहणी को घेरे पिले रंग का एक ग्रंथि होता है जिसे अग्नाशय कहते है।

पेप्टिक अल्सर

अमाशय की दिवारो में होने वाले घाव को पेप्टिक अल्सर कहते है।

वैसे व्यक्तियो मे जो लम्बे समय तक बिना भोजन के रह जाते है उन्हें पेप्टिक अल्सर होने की संभावना होती है।

पायसीकरण

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वसा के कणो का सरलीकरण पायसीकरण कहलाता है।

बहिष्करण

बडी आँत मे केवल अतिरिक्त जल का अवशोषण होता है जिसके बाद अनपचा भीजन मल के रूप मे त्याग कर देता है इस प्रक्रिया को बहिष्करण कहा जाता है।

स्वपोषी तथा विषमपोषी मे अंतर

स्वपोषी – यह केवल हरे पेड़ पौधे मे होता है इसके लिए कार्बन डाइऑक्साइड सुर्य के प्रकाश एवं जल आवश्यक है इसमे भोजन के पाचन कि आवश्यकता नही होती है।

विषमपोषी – यह हरे पेड़ पौधों के अतिरिक्त सभी अन्य जीवो मे होता हैं इसके लिए सुर्य का प्रकाश कार्बन डाइऑक्साइड इत्यादि अनिवार्य नही है इसमे भोजन पाचन कि आवश्यकता होती है।

श्वसन (Respiration)

वह जटिल जैविक रासायनिक प्रक्रम जिसमें कार्बनिक पदार्थों का चरणबद्ध ऑक्सीकरण के फल स्वरुप ऊर्जा मुक्त होती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड और जल बनते हैं श्वसन कहलाता है

C6H12O6→6CO2+6H2O+उर्जा श्वसन उपचायक क्रिया है

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श्वसन के प्रकार

अनॉक्सि श्वसन -वैसा श्वसन जिसमें O2 की आवश्यकता नहीं होती है उसे अनॉक्सि श्वसन कहते हैं इस क्रिया के दौरान ग्लूकोज का आंशिक ऑक्सीकरण होता है एवं पाइरुवेट इथेनॉल या लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है

ऑक्सि श्वसन –वैसे श्वसन जिसमें ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है उसे ऑक्सी श्वसन कहते हैं इस क्रिया के दौरान जल कार्बन डाइऑक्साइड और ऊर्जा का निर्माण होता है

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श्वासोच्छवास

मनुष्य में सांस लेने और छोड़ देने की क्रिया को श्वासोच्छवास कहते हैं

श्वसन और श्वासोच्छवास मे अंतर

श्वसन – यह क्रिया कोशिकाओं के अंदर होती है इस क्रिया के लिए एंजाइमों की आवश्यकता होती है इस क्रिया में श्वसन का आधार ऑक्सीकरण होता है इस क्रिया में ऊर्जा का निर्माण होता है

श्वासोच्छवास – यह क्रिया कोशिकाओं के बाहर होती है इस क्रिया के लिए इंजाइमों की आवश्यकता नहीं होती है इस क्रिया में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड गैसों का आदान प्रदान होता है इस क्रिया में ऊर्जा का निर्माण  नहीं होता है

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जीवो में श्वसन

एक कोशिकीय जीवों में श्वसन – अमीबा -अमीबा परासरण क्रिया द्वारा कोशिका झिल्ली से श्वसन की क्रिया करता है 

बहुकोशिकीय जीवो में श्वसन – हाइड्रा -हाइड्रा में श्वसन की क्रिया शरीर की सतह से विसरण के द्वारा होता है

स्पंज –स्पंज एक जलीय जीव है जो जल में घुले हुए ऑक्सीजन को उसके शरीर पर पाए जाने वाले छिद्र ऑस्ट्रिया के द्वारा ग्रहण करता है फिर आस्ट्रिया के द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड गैस जल में छोड़ देता है

बहु कोशिकीय श्वसन

त्वचीय श्वसन – जोंक तथा केंचुआ मुखगुहा – मेढक

कीटों में श्वसन

ट्रेकिया – टीड्डा चींटी मधुमक्खी  गिल्स – मछली झींगा

तिलचट्टा के रक्त को हिमोलिम्फ कहा जाता है

हाइड्रा में रक्त नहीं पाया जाता है

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झींगा मछली का रंग सफेद क्यों होता है

झींगा मछली के रक्त कणिकाओं में हेमोसाइएनिन नामक प्रोटीन पाया जाता है जिसके कारण झींगा मछली का रंग सफेद होता है

पौधों और जंतुओं के श्वसन में अंतर

पौधों में श्वसन –पौधों के द्वारा बहुत कम मात्रा में गैस परिवहन होता है पौधों में श्वसन धीमी से होती है पौधों के श्वसन में बहुत कम मात्रा में ऊर्जा निकलती है

जंतुओं में श्वसन –जंतु के द्वारा बहुत अधिक मात्रा में गैस का परिवहन होता है जंतुओं में श्वसन तेजी से होती है जंतु के श्वसन में बहुत अधिक ऊर्जा निकलती है

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किण्वन

पाइरूवेट का ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में इथेनॉल या लैक्टिक अम्ल कार्बन डाइऑक्साइड तथा ऑक्जेलिक अम्ल में परिवर्तित हो जाना किण्वन कहलाता है किण्वन यीस्ट में पाया जाता है

किण्वन का उपयोग

शराब बनाने में विभिन्न प्रकार के रंगों तथा प्लास्टिक के निर्माण में जूट उद्योग में तंबाकू उद्योग में

जैव रासायनिक क्रियाओं के प्रकार

अपचयन –जब जटिल कार्बनिक पदार्थ सरल अकार्बनिक पदार्थ में टूटते हैं तो इन क्रियाओं को अपचयन कहते हैं

उपचयन –जब सरल अकार्बनिक पदार्थ आपस में जुड़ते हैं और जुड़कर जटिल कार्बनिक यौगिक का निर्माण करते हैं उसे उपचयन कहते हैं

A.T.P

यह एक विशेष प्रकार का यौगिक है जो सभी जीवो के कोशिका में उर्जा का वाहक एवं संग्राहक है इसे ऊर्जा का सिक्का भी कहा जाता है

A.T.P के कार्य

कोशिकाओं के अंदर उर्जा का संवहन या संचयन करता है भिन्न-भिन्न रसायनों का संश्लेषण इसी के सहायता से होता है यह गति प्रदान करता है

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मानव श्वसन तंत्र

मानव श्वसन तंत्र के श्वसन क्रिया में सहयोग करने वाले सम्मिलित रूप को मानव श्वसन तंत्र कहते हैं

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मानव श्वसन तंत्र के भाग

मुख श्वसन तंत्र –मुख स्वसन तंत्र के अंतर्गत फेफड़े आते हैं मानव के आंतरिक भाग हृदय के दोनों ओर 1 जोड़ी थैली के समान थे फेफड़े होते हैं इस फेफड़े के भीतर दीवार में रुधिर कोशिकाओं का महीन जाल बिछा रहता है इस जाल के माध्यम से वायुमंडलीय ऑक्सीजन गैस को फेफड़े अवशोषित करके शरीर के विभिन्न कोशिकाओं में रक्त परिसंचरण के माध्यम से उतकों की कोशिकाओं में पहुंचाने का कार्य करती है

सहायक श्वसन तंत्र –जो श्वसन क्रिया में सीधे भाग नहीं लेते हैं किंतु यह सभी अंग मुख श्वसन तंत्र को श्वसन क्रिया करने में सहायक होते हैं

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सहायक श्वसन तंत्र के भाग

नासिका – नासागुहा का मुख्य कार्य सुँघना होता है इसमे एक कला पायी जाती है जिसे हम म्युकस कला कहते है प्रत्येक मनुष्य मे1–2 लीटर म्युकस का स्राव होता है।

  • नासागुहा कि आंतरिक भिति मे श्लेष्मा ग्रंथिया पायी जाती है जीनके कारण वह गिली होती है
  • नासागुहा में वायुमंडल से पहुँचने वाली वायु मे उपस्थित धुलकण या जीवाणु श्लेष्मा से चिपक जाते है और अंदर नही पहुँच पाते है ।
  • नासागुहा से पहले नसा छिद्रो से आगे कि दिवारो पर बाल पाये जाते है जो वायु को छानने का कार्य करता है।
  • नासाद्वार के आगे के घुमावदार रास्ते को नेसोफेरिक्स या ग्रसनी कहते है
  • पुरुषो के कंठ कि उपस्थित उठी हुई रहती है।
  • कंठ के बीच में दो स्वर रज्जू पाए जाते हैं जिनके कंपन से आवाज पैदा होती है
  • कंठ से आगे का भाग श्वास नली कहलाता है
  • दोनों फेफड़ों में 700 कोशिकाओं के गुच्छे पाए जाते हैं
  • कुपिकाओं के भीतरी सतह पर शल्की एपिथीलियम ऊतक पाई जाती है

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डायाफ्रॉम –डायफ्रॉम एक लचीली परंतु मजबूत रचना होती है जो वक्ष को पेट से अलग करती है यह नीचे अथवा ऊपर की ओर फैल कर वक्ष गुहा के आयतन को घटाने या बढ़ाने का कार्य करती है जिसके कारण फेफड़े पिचकते और फैलते हैं 

श्वसन प्रक्रिया का चरण

अंतः श्वसन –वातावरण से वायु को फेफड़ों में प्रवेश कराना अंतः श्वसन कहलाता है इस क्रिया के दौरान डाय फ्रॉम नीचे की ओर संकुचित होती है सीने की पसलियां फैलती है और पेट की पेशियां सिकुड़ती है जिससे वक्ष गुहा का आयतन बढ़ जाता है

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वाह्य श्वसन –फेफड़ों के अंदर की वायु का बाहर आना वाह्यश्वसन कहलाता है इस क्रिया के दौरान डायफ्रॉम ऊपर की ओर संकुचित होती है सीने की पसलियां दफ्ती है और पेट की पेशियां पर दबाव पड़ता है जिससे फेफड़े पिचकते हैं और उनमें भरे हुए गैस ब्रॉक्स ट्रेकिया तथा नाक से होते हुए बाहर आ जाती है

यदि हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन नहीं होता तो फेफड़े से पैर तक ऑक्सीजन 3 वर्षों में पहुंच पाती

क्रेब्स चक्र

जब पाइरुविक अम्ल कोशिका कि माइट्रोकॉण्ड्रिया मे बनने वाले इंजाइमो के प्रभाव मे चक्रिय पथ मे सरलीकरण होता है इस चक्रिय पथ को क्रेब्स चक्र कहते है इस चक्र का नाम सर हैन्स क्रेब्स के नाम पर पड़ा

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परिवहन

जीवो में परिवहन वह प्रक्रम है जिसमें किसी भी तरह के माध्यम द्वारा पोषक तत्व उर्जा इत्यादि शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में पहुंचाती है परिवहन कहलाता है

परिवहन के महत्वपूर्ण भाग

रुधिर –वे संयोजी उत्तक जो तरल रूप में पाई जाती है जो विभिन्न प्रकार के पदार्थों को पूरे शरीर में हृदय के द्वारा संचालन करती है

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रधिर के प्रमुख घटक

प्लाज्मा –रक्त जो द्रव के रूप में पाया जाता है उसे प्लाज्मा कहते हैं यह हल्के पीले रंग का चिपचिपा द्रव है जो आयतन के हिसाब से पूरे रक्त का लगभग 55% होता है प्लाज्मा में उपस्थित प्रोटीन प्लाजमा प्रोटीन है जो 7% पाया जाता है प्लाज्मा में लगभग 90% जल पाया जाता है

R.B.C(Red blood cell)

लाल रक्त कणिकाएं शरीर में श्वसन गैसों का परिवहन करती है इसलिए इसे ऑक्सीजन का वाहक कहते हैं इसमे एक विशेष प्रकार का प्रोटीन पाया जाता है जिसे हीमोग्लोबिन कहते हैं इसी प्रोटीन के कारण R.B.C लाल होता है

W.B.C(White blood cell)

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श्वेत रक्त कणिकाओं में हीमोग्लोबिन जैसे रंग नहीं पाए जाते हैं जिसके कारण रंगहीन होते हैं इस प्रकार की कणिकाएं बाहर से आने वाले जीवाणु और विषाणु को शरीर के अंदर मार देती है जिसे शरीर की सिपाही भी कहते हैं

प्लेटलेट्स

इस प्रकार की कणिकाएं रक्त को थक्का बनाने में सहायक होते हैं इसके संख्या मानव के रक्त में लगभग 30000/mm³ पाए जाते हैं

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रक्त के कार्य(Function of Blood)

यह ऑक्सीजन का परिवहन करता है यह संक्रामक रोगों से शरीर की सुरक्षा करता है यह पचे हुए भोजन के अणुओं को कोशिकाओं तक परिवहन कराता है यह उत्सर्जित पदार्थों का परिवहन करके उन्हें गुर्दे तक लाता है यह श्वसन के समय बनने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को वापस फेफड़ों तक लाता है जिसके कारण शरीर को उससे मुक्ति मिलती है

रक्तवाहिनी के प्रकार

धमनियाँ –यह शुद्ध रक्त को हृदय से शरीर के विभिन्न भागों में ले जाती है इनकी दीवारें मोटी लचीली तथा कपाटहिन होती है इन वाहिनियों में रक्त का प्रवाह तेजी से होता है

रक्त कोशिकाए – ये अत्यंत पतली पतली रक्त नलिकाएं है जो मुख्य नलिकाओ कि शाखाओ और उपशाखाओ के रूप मे शरीर मे जाल कि तरह पतली होने के कारण इन्हे रक्त कोशिकाएं कहते है।

शिराएँ

यह एक पतली भितियो वाली रक्त नलिका हैं जो शरीर के विभिन्न अंगों से रक्त को ह्रदय की ओर लाने का कार्य करती है यह शरीर में प्रायः त्वचा के नीचे पाई जाती है

शुद्ध रक्त और अशुद्ध रक्त

ऑक्सीजन युक्त रक्त को शुद्ध रक्त कहते हैं तथा ऑक्सीजन से वंचित कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य पदार्थों से युक्त रक्त को शुद्ध रक्त कहते हैं

ह्रदय

मनुष्य का हिर्दय एक शंकुएकार पेशिए अंग है जो फेफड़ों के बीच कुछ बाएं ओर स्थित यह लगभग 13cm लंबा 9cm चौड़ा तथा 6cm मोटा होता है ह्रदय में 4 वेश्म पाए जाते हैं इसका भार लगभग 300 ग्राम होता है

हृदय का सिकुडना सिस्टोल तथा अनुसिथिलन या फैलाव को डायस्टोल कहते है

आलिंद कि दिवारे पतली परंतु निलय कि दिवारे मोटी होती है।

हृदय के कार्य(Function of Heart)

रुधिर को एक पंप की तरह शरीर के विभिन्न भागों में भेजना और अशुद्ध रक्त को शुद्ध होने के लिए फेफड़ों और गुर्दों में भेजना शुद्ध रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों में भेजना

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मनुष्य में रक्त परिसंचरण को दोहरा परिसंचरण क्यों कहते हैं ?

परिवहन का एक चक्कर पूरा करने में रक्त को हृदय से होकर दो बार गुजारना पड़ता है इसलिए मनुष्य में रक्त परिसंचरण को दोहरा परिसंचरण कहते हैं

धड़कन

सिस्टोल और डायस्टोल मिलकर हृदय के एक धड़कन कहलाता है

रक्तचाप

महाधमनी एवं उनकी मुख्य शाखाओं में रक्त प्रभाव का दाब रक्तचाप कहलाता है

हाइपरटेंशन

सामान्य से अधिक उच्च रक्तचाप को हाइपरटेंशन कहते है।

लसिका

यह एक पिले रंग का द्रव होता है इनमें लाल रुधिर कणो का अभाव होता है।

लसिका का कार्य

यह कार्बनिक अम्ल का निर्माण करता है शरीर को संक्रमण से सुरक्षा करता है यह जल को रक्त में सम्मिलित करता है  रुधिर में लाल रक्त की कोशिकाओं की संख्या 5×10⁶/mm³ होता है।

Biology class 10th chapter 1 Notes in Hindi

संवहन उतक

पेड़ पौधो में जल एवं भोज्य पदार्थो के परिवहन हेतु विशिष्ट प्रकार के उतक पाये जाते है जिसे संवहन उतक कहते है जैसे जाइलम एवम् फ्लोएम

जाइलम (Xylem)

पेड़ पौधों के अंदर पाये जाने वाले वैसे संवहन उतक जो जल का परिवहन करते है जाइलम उतक कहलाता है।

फ्लोएम (Phloem)

पेड पौधो के अंदर पाये जाने वाले वैसे संवहन उतक जो खाध्य पदार्थो का परिवहन करते है उसे फ्लोएम कहते है।

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जाइलम तथा फ्लोएम में अंतर

जाइलम –इसकी कोशिकाएं मृत होती है यह जल का परिवहन करता है इसमें जल का बहाव ऊपर की ओर होती है

फ्लोएम –इसकी कोशिकाएं जीवित होती है यह खाद्य पदार्थों का परिवहन करता है इसमें खाद्य पदार्थों का परिवहन ऊपर तथा नीचे दोनों ओर होता है

पादप में परिवहन का विधि

स्थानांतरण –खनिज एवं भोजन के जलीय घोल को पौधों में एक भाग से दूसरे भाग में जाना स्थानांतरण कहलाता है

वाष्पोत्सर्जन –पतियों की सतह पर पाए जाने वाले वात रंध्रों से होकर जल का भाप के रूप भाग के रूप में वातावरण में विलयन होना वाष्पोत्सर्जन कहलाता है।

चालनी नलिका

फ्लोएम द्वारा भोजन का परिवहन जीवित कोशिकाओं द्वारा होता है जिसे चालनी नलिका कहते है

उत्सर्जन (Excretion)

जीवो के शरीर से विषैले अपशिष्ट पदार्थों को निकालने की प्रक्रिया को उत्सर्जन कहते हैं

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उत्सर्जन के आधार पर जंतुओं का प्रकार

एमीनोटेलिक – वैसे जीव जो उत्सर्जी पदार्थ के रूप मे अमोनिया का त्याग करते है उसे एमिनोटेलिक कहते है जैसे मछलियाँ प्रोटोजोआ

युरियोटेलिक –वैसे जीव जो उत्सर्जित पदार्थ के रूप में यूरिया का त्याग करते हैं उसे यूरियोटेलिक कहते हैं जैसे मेढक समस्त स्तनधारी

यूरोकोटेलिक –वैसे जीव जो उत्सर्जी पदार्थ के रूप में यूरिक अम्ल का त्याग करते हैं उसे यूरोकोटेली कहते हैं जैसे पक्षी सभी सरीसृप

उत्सर्जी अंग के प्रमुख अंग

किड़नी –इसके दो प्रकार होते हैं कॉर्टेक्स एंड मेडुला प्रत्येक किडनी 1 करोड़ 30 लाख नालियों से बनी होती है जिसे नेफ्रॉन का होते हैं प्रत्येक किडनी का वजन 120 ग्राम होता है किडनी में ही कैल्शियम ऑक्सलेट बनता है रक्त के शुद्धिकरण की प्रक्रिया को डायलिसिस कहते हैं यूरिन का pH मान 6 होता है यूरिन का रंग हल्का पीला होता है उसमें उपस्थित यूरोक्रोम के कारण होता है सामान्य यूरिन में 95% जल 2.7% युरिया 0.3% युरिक अम्ल तथा 2% लवण

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किडनी का कार्य

किडनी रक्त के प्लाज्मा को छानकर उसे शुद्ध करने का कार्य करती है रक्त में से अनावश्यक पदार्थ को फिल्टर करके कुछ पानी के साथ यूरिन के रूप में शरीर से बाहर निकालती है प्रत्येक मनुष्य में 1 जोड़ी किडनी पाया जाता है इसका आकार सेम के बीज के समान होता है वह गहरे भूरे लाल रंग का होता है

मनुष्य का उत्सर्जन तंत्र

मूत्र वाहिनी -प्रत्येक वृक्क के हाइलम से एक मूत्र वाहिनी निकलती है मुत्र वाहिनी के शिर्ष भाग वृक्क से बाहर निकलती है जो थोड़ा ज्यादा मोटा होता है उस मोटे भाग को मूत्र वाहिनी कहते हैं

मुत्राशय – नाशपाती के आकार की पतली दीवार वाली एक थैली के समान रचना है जो उदर गुहा के पिछले भाग में रेक्टम के नीचे स्थित होता है

मुत्रमार्ग –मूत्राशय के पिछले भाग से एक नली खुलती है जिसे मूत्रमार्ग कहते हैं

मुत्रमार्ग के त्रिकोण क्षेत्र को मुत्राशय का ट्राइगोन कहते है प्रत्येक मुत्रवाहिनी पिछे कि ओर मुत्राशय मे खुलती है।

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अपोहन

वह प्रक्रिया जिसके द्वारा रक्त में उपस्थित पदार्थों के छोटे-छोटे अणु छान लिए जाते हैं परंतु प्रोटीन जैसे बड़े अणु नहीं छन पाते हैं जिसे अपोहन कहते हैं पौधों में पाए जाने वाले मुख्य उत्सर्जी पदार्थ टेनीन रेजीन तथा गोंद है।

जल संतुलन

शरीर मे जल की मात्रा का संतुलन जीस क्रिया के द्वारा होता है उसे जल संतुलन कहते है।

त्वाचा –त्वचा स्वीट ग्लैंड पसीने के रूप में अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालती है और शरीर का तापमान नियंत्रित रखती है मानव शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन फेफड़े के द्वारा ही होता है शरीर का मुख्य उत्सर्जी पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड होता है

यकृत – यह हानिकारक पदार्थ को यूरिया एवं यूरिक अम्ल में बदलकर किडनी की सहायता से उत्सर्जित करता है यह वसा का पाचन भी करता है

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मुत्र बनने कि मात्रा का नियमन

मुत्र बनने कि मात्रा का नियमन उत्सर्जी पदार्थो के सान्द्रण जल कि मात्रा तंत्रीकिय आवेश या उत्सर्जी पदार्थ कि प्राकृति द्वारा होता है। 

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